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पर्यायोंको विषय करता है; अर्थात् जो सम्पूर्ण द्रव्यों और पर्यायोंको विषय नहीं कर सकता उसको विकलप्रत्यक्ष कहते हैं । उसके भी दो भेद हैं, एक अवधिज्ञान दूसरा मन:पर्ययज्ञान । वीर्यान्तरायकर्मके क्षयोपशम के साथ अवधिज्ञानावरणकर्मका क्षयोपशम होनेसे उत्पन्न हुआ, केवल रूपीद्रव्यको ( पुगलको ) विषयकरनेवाला ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है । जो मनःपर्ययज्ञानावरण तथा वीर्यान्तराय कर्मके क्षयोपशमसे दूसरेके मन में स्थित पदार्थको विषय करनेवाला ज्ञान उत्पन्न होता है उसको मनः पर्यय कहते हैं । मतिज्ञानकी तरह अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञानके अवान्तर भेदोंको, तत्त्वार्थसूत्रकी वार्तिकोंपर रचे हुए भाष्यरूप राजवार्तिक तथा लोकवार्तिकद्वारा समझना चाहिये ।
सर्वद्रव्यपर्यायविषयं सकलम् । तच्च घातिसङ्घातनिरवशेषघातनात्समुन्मीलितं केवलज्ञानमेव “ सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य" इत्याज्ञापितत्वात् । तदेवमवधिमनः पर्यय केवलज्ञानत्रयं सर्वतो वैशद्यात्पारमार्थिकं प्रत्यक्षम् । सर्वतो वैशद्यं चात्ममात्रसापेक्षत्वात् ।
जो सम्पूर्ण द्रव्य और उनके सम्पूर्ण ही पर्यायोंको विषयकरनेवाला ज्ञान है उसको सकलप्रत्यक्ष कहते हैं । और वह प्रत्यक्ष चारों धातिकमौके सर्वथा अभावसे उत्पन्न होनेवाला ऐसा केवलज्ञान ही है । क्योंकि तत्त्वार्थाधिगममें ऐसा लिखा है कि " सम्पूर्ण द्रव्य और सम्पूर्ण पर्यायोंमें केवलज्ञानकी प्रवृत्ति है" । इस प्रकार अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान, केवलज्ञान, ये तीनों ही सर्वथा विशद होने से पारमार्थिकप्रत्यक्ष कहे जाते हैं । सर्वथा विशदताका कारण यह है कि ये अपनी उत्पत्तिमें इन्द्रियादिक परवस्तुकी सहायता नहीं लेते।
१ ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय । २ क्योंकि ऐसा कहा है