Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 57
________________ ४६ होनेको सिद्ध करता है अर्थात् पर्वतमें रहनेवाली जिस अग्निको कोई अनुमानसे जानता है उसी अग्निको पर्वतपर जाकर देखनेवाला कोई मनुष्य प्रत्यक्ष से भी जानलेता है । इस प्रकार प्रत्यक्ष के साथ रहनेवाला अनुमेयत्व हेतु परमाणु आदिक स्वभावविप्रकृष्टादि पदार्थोंको भी किसी न किसीके प्रत्यक्षगोचर होना सिद्ध करता है । अर्थात् जैसे अनुमेय अनि किसी न किसी के प्रत्यक्ष है उसी प्रकार परमाणु आदिक भी अनुमेय होनेसे किसी न किसीके प्रत्यक्ष हैं। अनुमानके विषयभूत पर्वतीय अनि आदिक यावत् अनुमेय पदार्थोंमें रहनेवाला जो अनुमेयत्व धर्म वह जिस जिस वस्तुमें रहता है उस उसमें प्रत्यक्षत्व धर्म भी रहता है, क्योंकि जिस प्रकार जिस परोक्षभूत अग्निको हम धूम देखकर अनुमानप्रमाणद्वारा निश्चित करते हैं वही अग्नि उस मनुष्यको प्रत्यक्ष भी जानी जाती है कि जो पर्वतपर चढ़ कर देखना चाहता हो । इसी प्रकार हम सरीखे अल्पश मनुष्योंको जिन जिन वस्तुओंका प्रत्यक्ष ज्ञान हो सकता है वे वे वस्तुएं हमको प्रत्यक्ष न होकर केवल अनुमानके गोचर होनेपर भी हम सरीखे किसी न किसी उस मनुष्यको प्रत्यक्ष भी हो जाती हैं कि जो उनको प्रत्यक्ष करने की पूर्ण सामग्री मिलाता है । इस लिये हम अनेक बार अनुमेयत्व धर्मको प्रत्यक्षत्व धर्मका अविनाभावी देखते हुए यह निश्चय करते हैं कि जो जो पदार्थ अनुमेयत्वधर्मविशिष्ट हों अर्थात् जो जो अनुमानद्वारा जाने जासकते हों वे वे हमारे प्रत्यक्षज्ञानगोचर न होनेपर भी किसी न किसीके प्रत्यक्ष अवश्य होने चाहिये । इसी लिये स्वभावसे सूक्ष्म परमाणु आदि, देशदर मेरु पर्वतादि, कालसे अन्तरित रावणादि तथा भविष्यत्कालवर्ती पदार्थ, ये सभी जब अनुमेय हैं अर्थात् अनुमानद्वारा जाने जा सकते हैं तो इन सबका प्रत्यक्ष भी किसी न किसीको अवश्य हो सकता है । जो हम सरीखे अल्पज्ञोंके अगोचर परमाणु आदिका प्रत्यक्षज्ञाता हो वही सर्वज्ञ होना चाहिये ।

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