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अथ परोक्षप्रमाणनिरूपणं प्रक्रम्यते । अविशदप्रतिभासं परोक्षम् । अत्र परोक्षं लक्ष्यम्, अविशदप्रतिभासत्वं लक्षणम् । यस्य ज्ञानस्य प्रतिभासो विशदो न भवति तत्परोक्षप्रमाणमित्यर्थः । वैशद्यमुक्तलक्षणम् । ततोन्यदवैशद्यमस्पष्टत्वम् । तदप्यनुभवसिद्धमेव ।
अब परोक्ष प्रमाणका निरूपण करते हैं । अविशद प्रतिभासको परोक्ष कहते हैं । यहांपर परोक्ष लक्ष्यवाचक है और अविशदप्रतिभासत्व लक्षणवाचक है। अर्थात् जिसका प्रतिभास विशद नहीं हो उसको परोक्षप्रमाण कहते हैं । विशदताका लक्षण पहले कह चुके हैं। उससे जो भिन्न है उसको अविशदता अथवा अस्पष्टता कहते हैं । यह भी विशदताकी तरह अनुभवसे सिद्ध है ।
सामान्यमात्रविषयत्वं परोक्षप्रमाणलक्षणमिति केचित् तन प्रत्यक्षस्येव परोक्षस्यापि सामान्यविशेषात्मकवस्तुविषयत्वेन तस्य लक्षणस्यासम्भवित्वात् । तथा हि । घटादिविषयेषु प्रवर्तमानं प्रत्यक्षप्रमाणं तद्गतं सामान्याकारं घटत्वादिकं व्यावृत्ताकारं च व्यक्तिरूपं युगपदेव प्रकाशयदुपलब्धं तथा परोक्षमपि । इति न सामान्यमात्रविषयत्वं परोक्षलक्षणम् । अपि त्ववैशद्यमेव ।
कोई परोक्षप्रमाणका लक्षण इस प्रकार करते हैं कि "जो सामान्यमात्रको विषय करता है वह परोक्ष कहलाता है । " परन्तु यह कहना ठीक नहीं है । क्योंकि, परोक्षप्रमाण भी प्रत्यक्षकी तरह सामान्य और विशेष इन दोनों स्वरूपवाले वस्तुको विषय करता है; इस लिये परोक्षका यह लक्षण असम्भवी है । अर्थात् जिस प्रकार घटादि विषयोंमें प्रवृत्त होनेवाला प्रत्यक्षप्रमाण,