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दोनोंका एक कालमें ग्रहण नहीं होसकता । किंतु प्रहण होता देखा जाता है । इस प्रकार सन्निकर्षके अभावमें भी चक्षुसे रूपका ज्ञान होता है, अतः यह सिद्ध हुआ कि अव्यापक होनेसे प्रत्यक्षका खरूप, सन्निकर्ष नहीं होसकता।
अस्य च प्रमेयस्य प्रपश्चः प्रमेयकमलमार्तण्डे सुलभः । सङ्ग्रहग्रन्थत्वात्तु नेह प्रतन्यते । एवञ्च न सौगताभिमतं निर्विकल्पकं प्रत्यक्षम् । नापि यौगाभिमत इन्द्रियार्थसन्निकर्षः । किं तर्हि ? विशदप्रतिभासं ज्ञानमेव प्रत्यक्षं सिद्धम् ।
इस विषयको प्रमेयकमलमार्तण्डमें विस्तारपूर्वक लिखा है। परन्तु यह सङ्ग्रह ग्रन्थ है अर्थात् इसमें बालबोधके लिये छोटी छोटी सरल युक्तियोंद्वारा बहुत विषयोंका सङ्ग्रह किया गया है इसलिये इस विषयका यहांपर विस्तार नहीं किया जाता । इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि सौगतोंका (बौद्धोंका) माना हुआ निर्विकल्पक, तथा यौगोंका माना हुआ इन्द्रियार्थ सन्निकर्ष, प्रत्यक्ष नहीं है किन्तु निर्मलप्रतिभासखरूप ज्ञान ही प्रत्यक्ष है । __ तत्प्रत्यक्षं द्विविधं सांव्यवहारिकं पारमार्थिकं चेति । तत्र देशतो विशदं सांव्यवहारिकं प्रत्यक्षम् । यज्ज्ञानं देशतो विशदमीपनिर्मलं तत्सांव्यवहारिकप्रत्यक्षमित्यर्थः। तच्चतुर्विधम्-अवग्रह, ईहा, अवायो, धारणा चेति । __ उस प्रत्यक्षके दो भेद हैं एक सांव्यवहारिक, दूसरा पारमार्थिक । जो थोड़ासा विशद है उसको सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं अर्थात् जो ज्ञान परिपूर्ण विशद न हो-कुछ कुछ निर्मल हो वह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा जाता है। उसके भी चार भेद हैं, अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। १ अव्याप्तिदोषसहित ।