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व्यवस्था से सम्बन्ध रखते हैं। कौटिल्य ने एक स्थान पर लिखा है कि दण्डनीति अथवा अर्थशास्त्र अप्राप्य वस्तुओं को प्राप्त कराने, प्राप्त वस्तुओं की रक्षा करने तथा रक्षित वस्तु की वृद्धि कराने और वृद्धिगत वस्तु को सत्पात्रों में व्यय कराने में समर्थ है इसी विद्या के ऊपर संसार की उन्नति निर्भर है । दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र अथवा दीति उन उपायों का वर्णन करने वाला शास्त्र है जिन से समाज तथा विश्व का कल्याण हो सके ।
मन्त्रि-परिषद् का उन्होंने जनता के
अर्थशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य शासन - कार्य में राजा का पथ-प्रदर्शन करना तथा शासन की मूल समस्याओं का समाधान करना हो है । युद्ध एवं शान्ति काल में शासन यन्त्र का क्या स्वरूप होना चाहिए, इस विषय का जैसा सांगोपांग वर्णन अर्थशास्त्र में होता है देया है। राजतन्त्र के पोषक होते हुए भी आचार्य कौटिल्य राजा की स्वच्छन्दता का समर्थन नहीं करते। वे राजा को निर्माण करने तथा उस के परामर्श से कार्य करने का आदेश देते हैं। पक्ष का सर्वत्र समर्थन किया है। उन की स्पष्ट घोषणा है कि प्रजा के सुखी रहने पर ही राजा सुखी रहता है और प्रजा का हित होने पर ही राजा का हित हो सकता है । जो राजा को प्रिय हो, वह राजा का हित नहीं है, अपितु प्रजा को जो प्रिय हो वही राजा का हित होता है । इस प्रकार कौटिल्य ने लोकहितकारी राज्य की पुष्टि की है । उन के अनुसार यह लोक कल्याण राजा के बिना सम्भव नहीं है । अतः राजा का होना अनिवार्य है । एक राजा कैसा होना चाहिए, उस में कौन-कौन से गुण अपेक्षित हैं, उस को किस प्रकार जितेन्द्रिय होकर शासन करना चाहिए इन सब बातों का विशद वर्णन अर्थशास्त्र में मिलता है। ग्राम के संगठन से लेकर स्थानीय, प्रान्तीय एवं केन्द्रीय शासन व्यवस्था का विस्तृत वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है। राजा को किन राज्यों से मित्रता, किन से उदासीनता तथा किन से शत्रुता करनी चाहिए, इस का भी उल्लेख अर्थशास्त्र में मिलता है। राज्य विस्तार तथा उस के संरक्षण के लिए युद्ध का होना भी सम्भव है । अत: इस विषय पर भी विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। युद्ध कब किया जाये, किस प्रकार किया जाये, सेना और उस का संगठन, उस के प्रयोग के लिए सामग्री का निर्माण, विभिन्न प्रकार के दुर्गों का निर्माण, व्यूह रचना तथा युद्ध एवं कूटनीति सम्बन्धी नियमों का वर्णन विस्तारपूर्वक इस ग्रन्थ में किया गया है । इस प्रकार अर्थशास्त्र में अत्यन्त उच्चकोटि की शासन व्यवस्था का वर्णन मिलता है । इस में राजनीति से सम्बन्ध रखने वाली प्रायः सभी बातों पर प्रकाश डाला गया है । समस्त विश्व में अभी तक कोई एक ग्रन्थ ऐसा उपलब्ध नहीं हुआ है जिस में राज
९. वहीं १.४ ।
२. कौ० अर्थ १, ७ १.९५ ।
३. वही १.१६ ॥
प्रजाः सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम् । नारमप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् ॥
जीविका में राजनीति