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ने किया, उसी प्रकार उशनस् सम्प्रदाय के किसी अन्य विद्वान् ने वर्तमान शुक्रनीतिसार का संकलन कर उस में अनेक स्वरचित श्लोक सम्मिलित कर के उस को नवीन स्वरूप प्रदान किया। यही बात याज्ञवल्क्य स्मृति के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है । यहो कारण है कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उद्धृत मनू, शुक्र तथा याज्ञवस्मय के बहुत से श्लोक इन वर्तमान प्रन्थों में नहीं मिलते। कौटिल्य ने उपर्युक्त विद्वानों के जिन श्लोकों को उद्धृत किया है वे उन मूल ग्रन्थों में ही होंगे और कौटिल्म के समय में सम्भवतः यह समस्त राजनीतिक साहित्य किसी न किसी रूप में अवश्य ही उपलब्ध होगा । यही बात नीतिवाक्यामृत की टीका में भी मिलती है। टीकाकार ने आचार्य सोमदेव के मतों की पुष्टि के लिए मनु, शुक्र, याज्ञवल्लय आदि के जो अनेक इलोक उद्धृत किये हैं वे भी वर्तमान काल में उपलब्ध मनुस्मृति शुक्रनीतिसार तथा याज्ञवल्क्य स्मृति में प्राप्त नहीं होते । अतः यह स्पष्ट है कि कौटिल्य एवं नीतिवाक्यामृत के टीकाकार द्वारा उद्धृत मनु, शुक्र, याज्ञवल्क्य आदि के श्लोक इन विद्वानों के मूल ग्रन्थों के ही होंगे । इस सम्बन्ध में डॉ० श्यामशास्त्री का मत उल्लेखनीय है जो कि उन्होंने कौटिलीय अर्थशास्त्र की भूमिका में व्यक्त किया है। वे लिखते हैं- "इस से ज्ञात होता है कि चाणक्य के समय का याज्ञवल्क्ष्य धर्मशास्त्र वर्तमान याज्ञवल्क्य स्मृति से पृथक् ही था। इसी प्रकार कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में स्थान-स्थान पर बार्हस्पत्य और ओशनस नादि से जो अपने भिन्न विचार व्यक्त किये हैं वे मत वर्तमान काल में उपलब्ध इन धर्मशास्त्रों में दृष्टिगोचर नहीं होते । अतः यह भली-भाँति सिद्ध होता है कि कौटिल्य ने जिन शास्त्रों का उल्लेख किया है वे अन्य ही ग्रन्थ थे | डॉ० श्यामशास्त्री महोदय के उपर्युक्त विचारों से हम पूर्णतया सहमत हैं ।
वर्तमान उपलब्ध विशुद्ध राजनीति प्रधान ग्रन्थों में राजनीतिज्ञों को आश्चर्यचकित कर देने वाला कौटिल्य का अथशास्त्र, राजशास्त्र की विशद व्याख्या करने वाला सोमदेव का नीतिवाक्यामृत तथा कोटिल्य के अर्थशास्त्र के आधार पर विरचित एवं उस के सूत्रों की स्पष्ट व्याख्या करने वाला कामन्दक का नीतिसार ही है । यद्यपि स्मृतियों तथा महाभारतमें भी राजनीति की पर्याप्त चर्चा की गयी है, किन्तु इन ग्रन्थों में राजनीति का वर्णन गौण रूप से ही हुआ है। स्मृतियों धर्मप्रधान ग्रन्थ हैं और उन में धर्म, आचार एवं सामाजिक नियमों का वर्णन प्रधान रूप से हुआ है। अतः स्मृतियों एवं महाभारत का हम शुद्ध राजनीति प्रदान ग्रन्थों की श्रेणी में नहीं रख सकते | केवल कौटिल्य का अर्थशास्त्र हो समस्त प्राचीन नीति साहित्य का प्रतिनिधित्व करने वाला एक मात्र ग्रन्थ है। अतः नीतिवाक्यामृत की तुलना में हम कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा कामन्दक के नीतिसार को ही सम्मिलित करते हैं ।
१. ० श्यामशास्त्री की टिव्य अर्थशास्त्र की भूमिका ।
अतरच चाणक्यकालिकं धर्मशास्त्रमधुनातनःद्याज्ञवश्यधर्मशास्त्रादन्यदेवासीति । एवमेव मे पुनर्मानवबाईस्पत्यौशनला भिन्नाभिप्रायास्तत्र क्षेत्र कौटिक्मेन परामृष्टाः न तेनोपलभ्यमानेषु चर्मशास्त्रेषु हरयन्त इति कौटिल्य परामृशनि तानि शास्त्राश्यन्यान्येवेति बारं सुवचम् |
नीतिवाक्यामृत में राजनीति