________________ सेठियाजैनग्रन्थमाला (C) पेट के चार भाग कीजिये, उन में से दो भाग अन्न से भरिये, तीसरा भाग जल से और चौथा भाग वायु के चलने फिरने को बाली रहने दीजिये | मतलब यह हैं कि कुछ कम खाना चाहिये, किन्तु अधिक खाना अच्छा नहीं, बहुत अधिक खाने से शरीर कमजोर हो जाता है, शक्ति घट जाती है और आलस्य घेर लेता है, तथा पेट फूलना, पेट में गड़गड़ाहट आदि उपद्रव होते हैं / इसलिए मात्रा के अनुसार ही खाना चाहिये, मात्रा से अधिक नहीं। . (6) बुद्धिमानों को भूख लगने पर, अपने शरीर, अपनी प्रकृति और देश काल आदि के अनुकूल भोजन करना चाहिये। जो पदार्थ 'शीघ्र पचने वाले, पवित्र, स्वादिष्ट और हितकारी हों, वही खाने चाहिये, सूखे, बासी, सड़े हुए, अध पके, जले हुए, और बेस्वाद पदार्थ न खाने चाहिये। (10) बहुत जल्दी जल्दी खाने से भोजन के गुण दोष मालूम नहीं होते और भोजन देर में पचता है; क्योंकि दांतों का काम भांतों को करना पड़ता है / इसलिये भोजन को खूब रोंथकर(चबाकर) * खाना चाहिये, अच्छी तरह चबाकर खाया हुआ भोजन सहज में पच जाता, और अधिक पुष्टि करता है। (11) वैद्यक शास्त्र में सवेरे शाम, दो समय भोजन करने की प्रज्ञा है / सवेरे का भोजन 10 बजे के करीब और शाम का भोजन सूर्य प्रस्त होने के पहले ही कर लेना चाहिये ।शाम के भोजन में