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सत्य की प्रत्यक्ष घोषणा
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ने पंजाब के हर एक क्षेत्र में अपने लिये स्थान बनालिया। पंजाब का ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र बचा हो जहां
आपके दस बीस श्रद्धालु न बनगये हों। इसलिये पंजाब का हर एक क्षेत्र आपके स्वागत का इच्छुक था। और उस समय की बड़ी उत्कंठा से प्रतीक्षा करता था जब कि आपकी चरण धूली को अपने मस्तक का शृङ्गार बनाने का अवसर प्राप्त करे ! इसे कहते हैं सत्य की विजय ।
मालेर कोटला के चतुर्मास में अनेक भव्यजीवों को सन्मार्ग में लाने के बाद आप ने तो बिनौली की ओर प्रस्थान किया और श्री विश्न चन्द जी आदि साधुओं को पंजाब में ही रहने का आदेश दिया । ताकि विरोधी दल को खाली मैदान देखकर अपना प्रभाव जमाने का अवसर न मिल सके।
वि० सं० १९२७ का चतुर्मास आपने बिनौली में सम्पन्न किया। वहां पर भी आपने कतिपय उन्मार्गगामी सद्गृहस्थों को सन्मार्ग पर लाने का श्रेय प्राप्त किया। जिसकी साक्षी अाज भी बिनौली का गगनचुम्बी शिखरबन्ध जिनमन्दिर दे रहा है।
बिनौली के चतुर्मास में आपने आत्मबावनी नाम के एक छोटे भाषा काव्य की रचना की इस प्रकार बिनौली निवासियों को धर्म का अपूर्व लाभ देकर चौमासे बाद आपने फिर पंजाब की ओर प्रस्थान किया।
% यह ग्रन्थ आकार में तो बहुत छोटा है परन्तु इसका प्राध्यास्मिक विषय इतना गम्भीर है कि यदि कोई विशिष्ट विद्वान् इसके एक २ पद की शास्त्रीय दृष्टि से व्याख्या करने लगे तो कम से कम एक हजार पृष्ट लिखे जा सकते हैं । इस में अध्यात्मवाद का इतना सुन्दर और सरस वर्णन किया है कि अनेक वार पढ़ने पर भी तृप्ति नहीं होती । पाठक इसी जीवन गाथा के परिशिष्ट भाग में उसका अवलोकन करें।
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