Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 351
________________ नवयुग निर्माता दुगने बल से जाग्रत हो उठी और अन्य सब साथी तो शिथिल होगये केवल छगनलाल ही अपनी धुन का पक्का रहा। कुछ दिनों बाद महाराज श्री ने बड़ोदे से छाणी को विहार करदिया। विहार होने पर पीछे आकर कुछ श्रावकों ने अर्ज की कि महाराज ! कलकत्ते वाले बाबू बद्रीदासजी आपश्री के दर्शनों के वास्ते आये हैं यदि आप एक दिन और ठहरने की कृपा करें तो वे दर्शन कर लेवें । महाराज श्री ने उत्तर दिया कि भाई ! जो भाग्यशाली दर्शन के लिये आया है वह कहीं न कहीं तो या पहुंचेगा यदि विहार से पहले मुझे खबर मिलजाती तो ठहरने का भी विचार करलिया जाता । इतना कहकर विहार करदिया और छाणी पधार गये । इधर बाबू बद्रीदासजी भी स्टेशन से सीधे छाणी श्रा पहुँचे । महाराज श्री के पुनीत दर्शन करके आनन्द प्राप्त किया। विधि पुरस्सर वन्दना नमस्कार करने और सुखसाता पूछने तथा बदले में अमोघ आशीर्वाद रूप धर्मलाभ प्राप्त करने के अनन्तर बोले कि आपश्री के प्रताप से मुझे यहां के श्री जिनमन्दिर के दर्शन का भी लाभ प्राप्त होगया, यदि आपश्री का बड़ोदे में दर्शन करता तो यहां के प्रभु दर्शन से तो वंचित ही रहता । इसलिये यह भी आप श्री की अपार दया दृष्टि का ही शुभ परिणाम है । इस दृश्य का वहां पास में बठेहुए छगनलाल पर बड़ा प्रभाव पड़ा वह मन ही मन कहने लगा देखो गुरु महाराज की कितनी निस्पृहता और बाबूजी में भी कितना विवेक और नम्रता ! धन्य हैं ऐसे गुरुदेव और धन्य हैं ऐसे विवेकी श्रावक ! इससे छगनलाल के वैराग्य को और उत्तेजना और दृढ़ता प्राप्त हुई। जिस समय महाराज श्री ने बड़ोदे से छाणी को विहार किया उस समय खीमचन्द भाई भी आपके साथ छाणी तक आये और छगनलाल भी साथ में आया । छगनलाल का विचार तो महाराज श्री के साथ ही जाने का था परन्तु बड़े भाई श्री खीमचन्द के वहां उपस्थित होने से उनकी आज्ञानुसार उनके साथ वापिस घर को ही लौटना पड़ा मनकी भावको मनमें ही दवाकर । छगनलाल का यह सद्भाग्य समझिये कि एक साधु के बीमार होजाने के कारण थोड़े दिनों के लिये कुछ साधु बड़ोदे में ठहर गये थे जिनमें श्री हर्षविजयजी सबसे बड़े थे और वे ही व्याख्यान वांचा करते थे। उनका व्याख्यान बड़ा रसिक और आकर्षक होता था । सुनने वालों के हृदय पर उसका बड़ा गहरा असर पड़ता था। खीमचन्द भाई तो आपके व्याख्यान पर मुग्ध हो रहे थे। घर के अधिक से अधिक श्रावश्यक काम छोड़कर भी वे व्याख्यान में अवश्य आते थे। और उनके साथ में आनेवाले छगनलाल के हृदय पर श्री हर्षविजयजी महाराज के प्रवचन का जो प्रभाव पड़ा उसका तो कहना ही क्या ? उसका हृदय तो पहले ही वैराग्य के रंग में रंगा जा चुका था और उसमें जो कुछ भी कमी थी वह अब पूरी होगई। ___ कुछ दिनों बाद साधु महाराज का स्वास्थ ठीक होगया और श्री हर्षविजयजी महाराज ने बड़ोदे से बिहार करदिया । अब स्त्रीमचन्द भाई ने छगनलाल को कहा कि तूं घर में रह जा, और मैं छाणी तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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