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अध्याय ६४
"गुरु चरणों में अनन्यानुराग”
आचार्य श्री जब कभी अहमदाबाद में पधारे तब सेठ दलपतभाई भग्गुभाई के बेड़े में ही ठहरते रहे । सेठ दलपतभाई धनाढ्य होते हुए भी धन के घमंड से रहित थे । और बड़े सादे तथा शान्त स्वभाव सद्गृहस्थ थे एक दिन दोपहर के वक्त सेठ दलपतभाई आचार्य श्री के पास ही जमीन पर लेटे हुए थे उस समय सेठजी की तलाश करते हुए दो संभावित गृहस्थ पता चलने पर वहीं पर आ पहुँचे । सेठजी को गुरु चरणों के पास जमीन पर लेटे हुए देख के मन में बड़े चकित हुए और वहीं सेठजी के पास जमीन पर बैठ गये और सेठजी से बातें करते हुए कहने लगे कि आप इस तरह खाली जमीन पर क्यों लेट रहे हैं ? तब सेठजी ने आचार्य श्री की ओर अंगुली निर्देश करते हुए कहा कि ये दिव्यमूर्ति हमारे गुरु महाराज हैं इनके चरणों की धूली को प्राप्त करने के लिये मैं इनके चरणों में लेट रहा हूँ । इनकी चरण धूली में भी वही करामात है जो कि आपके विश्वास के मुताबिक भगवान् राम की चरणधूली में थी । उनकी चरणधूली ने ऋषि शाप से शिला बनी हुई अहल्या का उद्धार किया जब कि इनकी चरणधूली मुझ जैसे अनेकानेक पामरों का उद्धार कर रही है, इसीलिये मैं इनके श्री चरणों में लेट रहा हूँ ।
इतना कहने के बाद सेठजी ने आचार्य श्री को सम्बोधित करते हुए कहा – गुरुदेव ! ये दोनों सद्गृहस्थ मेरे घनिष्ट मित्र हैं, दोनों दाक्षणात्य ब्राह्मण और दोनों ही यहां की कोर्ट के जज हैं। ये लोग यहां मेरे को मिलने के लिये पधारे थे । सौभाग्यवश आपश्री के दर्शनों का भी इन्हें लाभ प्राप्त होगया । यदि आप श्री के वचनामृत पान करने का भी इन्हें पुण्य अवसर प्राप्त होतो बड़े सौभाग्य की बात है।
सुपुत्र
* सेठ लालभाई सरदार आपके ही सुपुत्र थे और इस समय विद्यमान सेठ कस्तूरभाई, स्वर्गीय लालभाई के हैं। इससे स्वर्गीय सेठ दलपतभाई का खानदान कितना प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित है यह सहज ही में जाना जा सकता । जो व्यक्ति जितने ऊ चे खानदान का होता है वह उतना ही नम्र और विवेकशील होता है ।
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