Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 369
________________ अध्याय ६५ "हार्नल महोदय और आचार्य श्री" मैसाणा के इस चातुर्मास में कलकत्ता की रोयल एशियाटिक सोसाइटी के मानद मंत्री डाक्टर ए० ऐफ० रोडेल्फ हार्नल महोदय संस्कृत और प्राकृत भाषा के अच्छे विद्वान थे, उन्होंने जैनागम उपासक दशा का सम्पादन किया है, उस सम्बन्ध में हार्नल महोदय ने अहमदाबाद निवासी शाह मगनलाल दलपतराम की मारफत आचार्यश्री से कई एक प्रश्न पूछे । उनका जवाब आपने इतना सन्तोषजनक दिया कि हार्नल साहब को बड़ी प्रसन्नता हुई । प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होजाने के बाद हार्नल महोदय ने शाह मगनलाल दलपतराम को जो पत्र लिखा उसकी नकल नीचे दी जाती है --- CALCUTTA 4th Sept. 1888. My Dear Sir, I am very much obliged to you for your kind letter of the 4th instance also to Muni Atmaramji for his very full replies. Please convey to the latter the expression of my thanks for the great trouble, he has taken to reply so promptly and so fully to my questions. His answers are very satisfactory. भावार्थ-मैं आपके पत्र के लिए कृतज्ञ हूँ। मैं मुनि श्री आत्मारामजी का इनके सम्पूर्ण उत्तरों के लिये आभारी हूँ । कृपया मेरा धन्यवाद उन्हें पहुंचा देवें । उन्होंने कष्ट उठाकर शीघ्र ही सम्पूर्ण उत्तर दिये हैं, जो कि अतिसन्तोषजनक हैं । इसके अतिरिक्त उपासक दशा की भूमिका में वे लिखते हैं -- In a third appendix I have put together some additional information that I have been able together since publishing the several facsimile. For some Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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