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ब्राह्मण युवक गुरु चरणों में
विहार करने से दो रोज पहले आपने कृष्णचन्द्र को कहा कि आओ आज तुमको जैनधर्म का एक रहस्यपूर्ण सिद्धान्त समझायें - जैन दर्शन समन्वय दृष्टि प्रधान दर्शन है। वह एकान्त दृष्टि प्रधान दर्शनों में रही हुई न्यूनता को पूर्ण करता है और विभिन्न दर्शनों के पारस्परिक विरोध को शान्त करके उन्हें अपने में समन्वित करलेता है। पदार्थ की हर एक अवस्था का सम्यग् अवलोकन करने वाली व्यापक दृष्टिअनेकान्त दृष्टि में सभी एकान्त दृष्टियें गर्भित हो जाती हैं। जैसे भिन्न २ मार्ग से प्रवाहित होनेवाली नदियें समुद्र में मिलजाती हैं, इसी प्रकार समुद्रतुल्य अनेकान्त दृष्टि प्रधान जैनदर्शन में अविरोधी रूप से सभी दर्शनों समावेश हो जाता है। इस विषय को समझने के लिये शास्त्रकारों ने एक हस्ती और उसको देखने वाले
अन्थों का बड़ा मनोरंजक दृष्टान्त दिया है। किसी स्थान में है अन्धे एक हाथी के स्वरूप का निश्चय करने के लिये एकत्रित हुए। सबसे पहले एक ने हाथी की पूछ को देखा और कहा कि हाथी एक बड़े मोटे रह जैसा है, दूसरे ने उसकी पीठ पर हाथ फेर कर कहा नहीं हाथी तो एक चौतड़े जैसा है, तीसरे ने पांव को देखा और कहा कि हाथी तो चक्की के पुड़ जैसा है, चौथा हाथी के कानों का स्पर्श करते हुए बोला तुम सब भूलते हो हाथी तो छाज जैसा है, अब पांचवां उठा उसने हाथी की टांगों को देखकर कहा समझ में नहीं आया तुम इतना झूठ क्यों बोलते हो हाथी तो थमले जैसा है, अब छठे की बारी आई उसने केवल सूंड को देखा और कहने लगा कि भाई मानो या न मानो हाथी तो किसी मोटे आदमी की टांग जैसा है ।
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इस प्रकार हाथी के केवल किसी एक अवयव को देखकर उसे ही हाथी मानने का आग्रह करने इन अन्धों में हाथी के स्वरूप को लेकर विवाद होना आरम्भ होगया, हर एक अपने देखे हुए हाथी के अवयव को हाथी का सच्चा स्वरूप समझने और दूसरे के देखे हुए को झूठा कहने लगा और उनके इस विवाद ने कलह का उग्र रूप धारण कर लिया। दैवयोग से वहां पर एक आंखोंवाला व्यक्ति भी खड़ा था, पहले तो वह कौतूहल वश उनकी हस्ती सम्बन्धी कल्पना को देखता रहा । परन्तु जब इस विषय को लेकर उनमें विवाद और कलह उत्पन्न हुआ तब उसे दया आई और उन सबको बुलाकर उसने कहा कि तुम नाहक में क्यों झगड़ रहे हो, आओ मैं तुम्हें हस्ती के स्वरूप का निश्चय कराऊं । तब उसने उन छ अन्धों को हाथी के पास लेजाकर प्रत्येक को हाथी के हर एक अवयव का स्पर्श कराते हुए पहले से पूछाबताओ कि हाथी केवल मोटे रस्से जैसा ही है कि बड़े चौतड़े जैसा चक्की के पुड़ जैसा छाज जैसा थमले और
ताजे पुरुष की टांग जैसा भी है ? केवल मोटे रस्से जैसा ही नहीं किन्तु बड़े चौतड़े, चक्की के पुड़, छाज, थमले और मोटे पुरुष की टांग जैसा भी है ? इसी प्रकार बारी २ सब को हाथी के प्रत्येक अवयव का स्पर्श करते हुए पूछने पर सबने पहले की तरह हो उत्तर दिया । तब उसने कहा कि फिर तुम झगड़ते किस लिये हो ? पूंछ की अपेक्षा हाथी मोटे रस्से जैसा भी है, और पीठ की अपेक्षा चौड़े और दूसरे अवयवों जैसा भी है
लोगों ने पृथक रूप से हाथी के केवल एक ही अवयव को देखा और उसे ही हाथी मान लिया, इसमें तुम्हारा दोष नहीं यह दोष तो तुम्हारी एकांगावगाहिनी मन्द दृष्टि का है जिसने हाथी के अन्य अवयवों की ओर
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