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नवयुग निर्माता
उसकी हमें तार द्वारा सूचना देवें । जो निबन्ध मुनिजी तैयार कर रहे हैं वह यथार्थतया हमारे लिये बहुत श्रानन्द प्रद होगा और उसे प्रोग्राम में वैसा ही उच्चपद दिया जावेगा जैसा कि उसके लेखक का उच्चपद है । यद्यपि हम यहां चिकागो में आपसे बड़ी दूर पर हैं तो भी मुनि आत्मारामजी का नाम प्रायः धार्मिक विवादों में आता है। इस धार्मिक परिषद् की कार्रवाई की जो पुस्तकें प्रकाशित होंगी उनके लिये कुछ चित्रों की
आवश्यकता है जिससे जैन धर्म की क्रिया विधि मालूम हो सके, इसलिये आपसे प्रार्थना है कि वह शीघ्र ही भेजने की कृपा करें । उपर्युक्त पत्र के आने से आचार्यश्री ने उक्त धर्मपरिषद् में अपना एक प्रतिनिधि भेजना तो सुनिश्चित कर लिया परन्तु किसे भेजा जावे यह एक विकट समस्या थी । कारण कि उस समय जैन समाज में ऐसे विद्वान् गृहस्थ नहीं के बराबर थे जो विदेश में जाकर जैनधर्म के महत्व को समझा सकें । बहुत कुछ सोच विचार करने के बाद आपकी दृष्टि श्रीयुत वीरचन्द राघवजी गांधी पर गई । तब आपने बम्बई के श्रीसंघ को लिखा और अपना विचार पूर्ण निश्चय बतलाते हुए उस पर इस बात का जोर दिया कि वह वीरचन्द राघवजी गांधी को वहां भेजने का पूरा २ प्रबन्ध करे । यद्यपि वहां कतिपय जैनों ने इसमें बाधा उपस्थित करने का यत्न किया परन्तु आचार्यश्री ने उन्हें बड़ी प्रौढ़ता से समझाया कि आप लोग जैनधर्म को उसके वास्तिविक रूप में समझने का यत्न नहीं करते और नहीं देखते कि वह इस विषय में कितना उदार है। याद रखिये आज तो आप लोग धर्म को प्रभावना के लिये भेजे जाने वाले व्यक्ति की समुद्र यात्रा का विरोध कर रहे हैं परन्तु वह समय बहुत नजदीक है जब कि आपकी सन्तानें मौज शोक के लिये समुद्र यात्रा करेंगी और आप उससे सहमत होंगे। अन्ततः सबको प्राचार्यश्री की आज्ञा के सामने झुकना पड़ा।
___तदन्तर आचार्यश्री ने श्रीयुत वीरचन्दजी गांधी को अमृतसर में अपने पास बुलाकर अनुमान एक मास तक रक्खा और जैनधर्म के बहुत से ज्ञातव्य विषयों से अच्छी तरह परिचित कराया और अपना लिखा हुआ निवन्ध [ जो कि चिकागो प्रश्नोत्तर के नाम से प्रसिद्ध है ] देकर अपने अमोघ आशीर्वाद के साथ उन्हें बिदा किया । तब श्रीयुत् वीरचन्द राघवजी गांधी बम्बई आकर, आचार्यश्री के प्रतिनिधि की हैसियत से चिकागो की सार्वधर्म परिषद् में संमिलित होने के लिये अमेरिका को प्रस्थान कर गये। और बम्बई के श्री संघ ने उन्हें सानन्द बिदा किया।
वहां-चिकागो में परिषद् का अधिवेशन १७ दिन तक होता रहा । प्रथम दिवस में उद्घाटन क्रिया के बाद परिषद् में सम्मिलित हुए हर एक प्रतिनिधि ने संक्षेप में अपना २ परिचय दिया । श्रीयुत वीरचन्दजी गांधी ने अपना परिचय इस प्रकार दिया
I represent Jainism, a faith older an Buddhism, similar to it in ethics, but different from it in its psycholgy, and professed by a million and a half of India's most peaceful and law-sbiding citizens .. ....
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