Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 426
________________ अध्याय १११ "अम्बाला का प्रतिष्ठा महोत्सव" पट्टी में होने वाले प्रतिष्ठा महोत्सव के समय पंजाब के अन्य शहरों के भाई भी काफी संख्या में आये हुए थे, जिन में अम्बाले से आने वाले भाइयों में श्री नानकचन्द ( केसरीवाला), वसंतामल, उद्दममल, कपूरचन्द, भानामल और गंगारामजी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं । जिस समय आचार्यश्री का विचार पट्टी से लाहौर की तरफ विहार करने का हुआ उस वक्त इन सबने हाथ जोड़कर आपसे अर्ज की कि महाराज ! आपश्री की कृपा से हमारे शहर में मन्दिर तैयार होगया है, आप लाहौर के बदले अम्बाले पधारने की कृपा करें । वहां के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराकर हमारे मनोरथ को भी पूरा करें, यही आपश्री के चरणों में हमारी श्राग्रह भरी प्रार्थना है । कृपानाथ ! काल का कोई भरोसा नहीं, हमारे जीते जीते वहां भी प्रतिष्ठा हो जावे यही अभिलाषा है । इसलिये हम अनाथों को भी सनाथ बनाओ। अम्बाला के श्रावक वर्ग की इस हार्दिक विनीत प्रार्थना ने आचार्यश्री के विचार को बदल दिया और उन्होंने लाहौर के बदले अम्बाले को विहार कर दिया। अम्बाला पहुंचने पर पूर्वोक्त, डाक्टर त्रिभुवनदास मोतीचन्द शाह ने आपकी दूसरी आंख के मोतिये का ऑपरेशन किया और उससे आपके दूसरे द्रव्यनेत्र में फिर से प्रकाश आगया । परन्तु डाक्टर साहब के मना करने से आपने अम्बाला के इस चातुर्मास में [जो कि सं. १६५२ में किया ] व्याख्यान वाचना बन्द रक्खा । पर्युषणा पर्व के लगभग मि वीरचन्द राघवजी गांधी अनुमान दो वर्ष के बाद अमेरिका आदि देशों का भ्रमण करके वापिस लौटने पर सर्व प्रथम आपके पास पहुंचे और चिकागो की सार्वधर्म परिषद् की १७ दिनको सारी कार्यवाही कह सुनाई । उसे सुनकर आचार्यश्री बहुत प्रसन्न हुए और मि० वीरचन्द राघवजी गान्धी के इस धार्मिक प्रयास की अनुमोदना करते हुए आपने उनको भूरि भूरि सराहना की एवं भविष्य में जिन शासन की प्रभावना के लिये सतत कटिबद्ध रहने की प्रेरणा देते हुए शुभाशीर्वाद दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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