Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 455
________________ ४२२ नवयुग निर्माता के मधु पीके टीके शीखंड सुखंड लीके करत कलोल जीके नागबेर चाख रे, तर कपूर पूर अव (ग) र तगर भूर मृगमद घनसार भरे धरे खात (ख) रे । सेव रू ब दारु पीसता बदाम चारु आतम चंगेरा पेरा चखत सुदाख रे, मृदु तन नार फास सजक (के) जंजीर पास पकरी नरकवास अंत भई खाख रे ||३८|| तरु खग वास वसे रात भए कसमसे सूर उगे जात से दूर करी चीलना, प्यारे तारे सारे चारे ऐसी रीत जात न्यारे कोउ न संभारे फेर मोह कहा कीलना । जैसे हवाले मोल मील के वीछर जात तैसे जग श्रातम संजोग मान दीलना, वीर मीत तेरो जाको तु करत हेरो रयेन वस (से) रो तेरो फेर नहि मीलना || ३६ || थोरे सुख का मूढ हार अमर राज करत काज जाने ले जग लुटके, कुटंब काज करे आम काज खरे लछी जोरी चोर हरे मरे शीर फुटके । करम सनेह जोर ममता मगन भोर प्यारे चले छोर जोर रोवे शीर कुटके, को जनम पाय वरथा गमाय ताह भूले सुख राह छले रीते हाथ उठके ||४०|| देवता प्रयास करे नर भव कुल खरे सम्यक श्रद्धान धरे तन सुखकार रे, करण अखंड पाय दीरघ सुहात आय सुगुरु संजोग थाय वाणी सुधा धार रे । तत्त्व परतीत लाय संजम रतन पाय आतमसरूप धाय धीरज पार रे, करत सुप्यार लाल छोर जग भ्रमजाल मान मीत जित काल वृथा मत हार रे ||४१ || धरत सरूप खरे अधर प्रवाल जरे सुन्दर कपुर खरे रदन सोहान रे, इन्दुवत वदन ज्यु रतिपति मदन ज्यु भये सुख मगन ज्यु प्रगट अज्ञान रे । पीक धुन साद करे धाम दाम भुर भरे कामनीके काम जरे परे खान पान रे, करता तुमान काहा (ह) आतम सुधार राह नहि भारे मान छोरे सोवना मसान रे ||४२ ॥ नरवर हरि हर चक्रपति हलधर काम हनुमान वर भानतेज लसे है, जगत उद्धार कर संघनाथ गरणधार फुरन पुमान सार तेउ काल से है । हरिचंद मुंज राम पांडुसुत शीतधाम नल ठाम छर वाम नाना दुःख फसे है, देढ दिन तेरी बाजी करतो निदान राजी आतम सुधार शिर काल खरो हसे है ||४३|| परके भरम भोर करके करम घोर गरके नरक जोर भरके मरदमे, धरके कुटंब पूर जरके आतम नूर लरके लगन भूर परके दरदमें । सरके कुटंब दूर जरके परे हजूर मरके वसन मूर खरके ललदमे, भरके महान मद धरके निव न हद धरके पुरान रद मीलके गरदमें ||१४|| फटके सुज्ञान संग मटके मदन अंग भटके जगत कग कटके करदमें, तो नर नाम खटके कनक दाम गटके अभक्षचाम भटके विदुमें । हटके धरम नाल डटके भरमजाल छटके कंगाल लाल रटके दरद में, के करत प्रान लटके नरक थान खटके व्यसन मिर (ल) आतम गरदमे || १५ || द्वा (बारामती नाथ निके सकल जगत टीके हलधर भ्रात जीके से वे बहु रान है, हाटक प्रकार करी रतन कोशीश जरी शोभत अमरपुरी स (सा)जन महान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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