Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 458
________________ ॐ ॐ अर्हनमः * परिशिष्ट २ -: दादा गुरुदेव :श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वरजी के शिष्यादि का पट्टक लेखक अज्ञान तिमिर तरणि कलिकाल कल्पतरु पंजाब केसरी युगवीर प्राचार्य श्री मद्विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज के चरण सेवी पट्टधर आचार्य समुद्रसूरि पंजाब देशोद्धारक, विश्वपूज्य शासनमान्य न्यायांभोनिधि जैनाचार्य दादा गुरुदेव १००८ श्री मद्विजयानंदसूरीश्वर ( आत्मारामजी ) महाराज विश्व की एक महान विभूति थे, परोपकार, शासनोद्धार आदि कार्यों से आपका जीवन अलौकिक एवं सुप्रसिद्ध ही है, अतः यहां आपकी जीवन घटनाओं का उल्लेख न करके केवल आपके सह ( साथ में ) दीक्षित तथा हस्त दीक्षित शिष्य प्रशिष्यादि और आपके रचित ग्रंथ व आपके कहां २ चौमासे हुए और कहां २ प्रतिष्ठा, अंजनशलाकायें की ? पंजाब में कहां २ मन्दिर हैं और उनकी कब प्रतिष्ठा हुई ? तथा पंजाब में ज्ञान भंडार और उपाश्रयादि कहां कहां हैं ? तथा आपके शुभ नाम से विद्यापीठ, सभायें इत्यादि किस किस स्थान पर स्थापित हैं ? और आपकी मूर्तियें कहां कहां विराजमान हैं ? उन सब की नामावली पाठकों की जानकारी के लिये यहां लिखी जा रही है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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