Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 451
________________ ४१८ नवयुग निर्माता नित्यानित्य एकानेक सासतीन वीतीरेक भेद ने अभेद टेक भव्याभव्य ठये है, शुद्धाशुद्ध चेतन अचेतन मूरती रूप रूपातीत उपचार परमकुं लये है ॥ ६ ॥ सिद्ध मान ज्ञान शेष एकानेक परदेश द्रव्य खेत काल भाव तत्त्व नीरनीत है, सात सत सात भंगके तरंग थात व्यय ध्रुव उतपात नाना रूप की है । रसकुंप केरे रस लोहको कनक जैसे तैसे स्यादवाद करी तत्त्वनकी रीत है, मिथ्यामत नाश करे प्रातम अनघ घरे सिद्ध वधु वेग वरे परम पुनीत है ॥ ७ ॥ धरती भगत हीत जानत अमीत जीत मानत आनंद चित भेदको दरसती, आगम अनुप भूप ठानत अनंत रूप मिध्याभ्रम मेटनकुं परम फरसती । जिन मुख वैन ऐन तत्त्वज्ञान कामधेन कवि मति सुधि देन मेघ ज्यूँ बरसती, गणनाथ चित(त्त) भाइ आतम उमंग धाइ संतकी सहाइ माइ सेवीए सरसती ॥ ८ ॥ अधिक रसीले झीले सुखमे उमंग कीले तमसरूप ढीले राजत जीहानमे, कमलवदन दीत सुन्दर रदल (न) सीत कनक वरन नीत मोहे मदपानमे । रंग बदरंग लाल मुगता कनकजाल पाग घरी भाग लाल राचे ताल तानमें, छीक तमासा करी सुपनेसी रीत घरी ऐसे वीर लाय जैसे वादर विद्वानमें ॥ ६ ॥ आलम अजान मान जान सुख दुःख खान खान सुलतान रान अंतकाल रोये, रतन जरत ठान राजत दमक भान करत अधिक मान अंत खाख होये है । केकी कलीसी देह छीनक भंगुर जेह तीनदीको नेह एह दुख:बीज बोये है, रंभा धन धान जोर आतम अहित भोर करम कठन जोर छारनमे सोये है ।। १० ।। इत उत डोले नीत छोरत विवेक रीत समर समर चित नीत ही धरतु (न) है, रंग राग लाग मोहे करत कूफर धोहे रामा धन मन टोहे चितमे अचेतुत) है। तम उधार ठाम समरे न नेमि नाम काम दगे (हे) आठ जाम भयो महाप्रेतु (त) है, तजके धरम ठाम परके नरक धाम जरे नाना दुःख भरे नाम कौन लेतु (त) है ॥ ११ ॥ ईस जिन भजी नाथ हिरदे कमलपाथ नाम वार सुधारस पीके महमहेगो, दयावान जगहीत सतगुरु सुर नीत चरणकमल मीत सेव सुख लहेगो । तमसरूप धार माया भ्रम जार छार करम वी (वि) डार डार सदा जीत रहेगो, दी (दे) ह खेह अंत भइ नरक निगोद लइ प्यारे मीत पुन कर फेर कौन कहेगो ? ॥ १२ ॥ उ भयो पुन पूर नरदेह भुरी नूर वाजत आनंदतूर मंगल कहाये है, भववन सघन दगध कर अगन ज्यु ं सिद्धवधु लगन सुनत मन भाये है। सरध्या (घा) न मूल मान आतम सुज्ञान जान जनम मरण दुःख दूर भग जाये है, संजम खडग धार करम भरम फार नहि तार विषे पिछे हाथ पसताये है ॥ १३ ॥ ऊंच नीच रंक कंक कीट ने पतंग ढंग ढोर मोर नानाविध रूपको धरतु है, श्रंगधार गजाकार वाज वाजी नराकार पृथ्वी तेज वात वार रचना रचतु है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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