Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 443
________________ नवयुग निर्माता बड़ाला ग्राम में पधारे । रात्रि को आधी रात के बाद श्वासरोग का आक्रमण बढ़ा और प्रतिक्षण बढ़ता ही गया जिससे एक कदम चलना भी कठिन होगया । एक दिन का सफर बड़ी कठिनता से तीन दिन में पूरा किया [शरीर के पूरे सहयोग के बिना अकेला मनोबल कितना सफल हो सकता है ? ] ___ लगभग १६ वर्ष के बाद ज्येष्ठ सुदि २ के दिन आचार्यश्री का गुजरांवाला में पधारना हुआ । गुजरांवाला श्री संघ ने बड़े समारोह के साथ आपका भव्य स्वागत किया और बड़ी धूमधाम के साथ आपका नगर में प्रवेश कराया गया। उपाश्रय में पहुंचने के बाद आपने थोड़ी देर आराम किया और फिर अपने दैनिक कृत्य में लग गये । आपकी शारीरिक अवस्था की ओर ध्यान देते हुए श्रावकों के मन चिन्तित थे, सब सेवकों ने प्रार्थना की कि किसी निपुण वैद्य से इस रोग की चिकित्सा कराई जावे । परन्तु आपने इस ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। यद्यपि भीतर में रोग बढ़ रहा था, फिर भी आपके प्रसन्न वदन पर मुस्कराहट खिल रही थी, और श्रांखों में ज्योति टपकती थी। अपने कष्ट को कर्मजन्य समझकर बड़ी शांति से सहन कर रहे थे, और अपने दैनिक क्रिया कलाप में साधारणतया लीन रहते थे। गुजरांवाला में बहुत वर्षों के बाद आपका आगमन हुआ था, इसलिये आपके दर्शनाभिलाषी प्रतिदिन बहु संख्या में आते थे। दिन रात पंडितों और मौलवियों से वार्तालाप में व्यतीत होता था । ज्येष्ट सुदि सप्तमी के दिन रात्रि के प्रतिक्रमण से निवृत्त होकर संथारा पोरसी करने के बाद आप लेट गये। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद उठ बैठे और ध्यान में मग्न हो गये । ध्यान समाप्त होते ही श्वास का वेग कुछ प्रबल हो उठा। समीप में सोये हुए साधुओं को जगाया और कहा कि आज मेरी तबीयत कुछ अधिक बिगड़ी हुई प्रतीत होती है । यह सुनकर सारा ही शिष्य परिवार चिन्ता के सागर में डूबने लगा। आपने सबको धैर्य दिया स्वयं स्थंडिल पधारे । और शुद्ध पवित्र होकर आसन पर बैठ गये। कुछ क्षणों के बाद ध्यानारूढ़ हुए आपने ॐ अर्हन, ॐ अर्हन, ॐ अर्हन ऐसे तीन बार कहा और आंखें खोलकर सामने बैठे शिष्य परिवार को सम्बोधित करते हुए आप बोले-लो भाई ! मेरा अब तुम लोगों से जुदा होने का समय निकट आ पहुँचा है, यदि मैंने मन वचन और काया से किसी के मन को आघात पहुँचाया केवल खट्टी छाछ से निर्वाह करना पड़ा। पसरूर के ब्राह्मण, क्षत्रिय अादि अन्य लोगों को वहां के भावड़ों के इस असाधु व्यवहार से बहुत कष्ट हुअा । उन्होंने इनको बहु फटकारा तब कई एक ने श्राकर प्राचार्यश्री से वहां ठहरने की थिनति करते हुए कहा कि महाराज ! श्राप इस वक्त बिहार करना मुल्तवी करदै, हम लोगों से जो अवशा हुई है, उसकी हम क्षमा मांगते हैं और आगे को ऐसा नहीं होगा, हमसे यह बड़ी भारी भूल हुई है जिसका हमें अधिक से अधिक पश्चाताप है । कम से कम आप अाज तो विहार न करें, हम सबकी श्रापश्री के चरणों में यह अाग्रह भरी विनति है, अाप इसे अवश्य स्वीकार करें । भावी भाव अमिट होता है, अापश्री के परम कृपालु मन पर उन लोगों की प्रार्थना का तनिक भी असर नहीं हुआ और बिना कुछ कहे सुने अापने विहार कर दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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