Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 431
________________ ३६८ नवयुग निर्माता वृद्ध के इस कथन पर लोगों की कुछ आस्था जमी और पांच सात संभावित गृहस्थ मिलकर ला० गंगारामजी आदि श्रावकों के पास गये और ऊपर कहा गया सारा वृतान्त उनसे कहा। तब ला० गंगारामजी ने उनका सभ्यता भरे शब्दों में स्वागत करते हुए कहा कि बड़ी खुशी से आप लोगों के इस निवेदन को सम्मान दिया जावेगा। आप लोगों की सहानुभूति और सहयोग से हमारा यह धर्म कार्य हमारी आशा से भी बढ़कर सफलता से सम्पन्न हुआ है । अब हमें इस झंडे की कोई जरूरत नहीं । गुरु महाराज आजकल लुधियाने में विराजमान हैं, मैं आज ही वहां जाता हूँ। वहां गुरु महाराज की सम्मति लेकर जिस विधि से झंडे को वहां से उखाड़ना योग्य होगा, उसके अनुसार उखाड़ लिया जावेगा। जहां तक बन पड़ेगा, इसका कल ही प्रबन्ध कर लिया जावेगा । इस विषय में आप बिलकुल बेफिक्र रहें । इतना वार्तालाप करने के बाद आये हुए सद् गृहस्थों ने तो अपने २ घरों का रास्ता लिया और ला० गंगारामजी लुधियाने पहुँचने के लिये रेल्वे स्टेशन को रवाना होगये । लुधियाने पहुंचने पर लालाजी ने सारा वृतान्त गुरुदेव को कह सुनाया । आचार्यश्री ने ला० गंगारामजी के कथन को ध्यान पूर्वक सुना और हंसते हुए बोले-ये भोले लोग तो मन में यही समझ रहे होंगे कि महाराजश्री ने वर्षा को बांध रक्खा है। अस्तु, अब तो तुम्हें इस झंडे की कोई आवश्यकता नहीं है, फिर किसलिये लोगों को वहम में रखना, अतः तुम तुमारा अवसर देख लो। आचार्यश्री के इतने फर्माने पर ला० गंगारामजी अपने गृहस्थोचित कर्तव्य को समझ गये और आचार्यश्री को वन्दना करके वापिस अम्बाले आगये । आने पर अपने साथियों को इकट्ठा करके सारी बात समझादी और एक जानकार व्यक्ति को साथ लेकर ध्वजा को वहां से विसर्जित कर दिया । व्यष्टि अथवा समष्टि में सामूहिक रूप से उत्पन्न होने वाली मानसिक एकाग्रता में कितना बल होता है, इसे योगी अथच मैसमेरेज़न के ज्ञाता लोग बखूबी समझते हैं । इसे गुरुदेव का जीवन चमत्कार समझो अथवा देवी घटना कहो, ध्वजा का विसर्जन होते ही आकाश में बादल दिखाई देने लगे और आन की आन में इकट्ठे होकर इतने बरसे कि अम्बाले में चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा । लोगों की मुआई हुई मानस लतायें एक दम हरी भरी हो उठीं अम्बाले की जनता पर इस घटना का बड़ा भारी प्रभाव पड़ा और गुरुदेव के प्रति उनकी श्रद्धा और भी अधिक बढ़ी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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