Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

Previous | Next

Page 398
________________ मुन्शी अब्दुलरहमान से प्रश्नोत्तर ३६७ श्राचार्यश्री को सम्बोधित करते हुए कहा-महाराज ! आपकी शान्ति और गम्भीरता ने तो हम सबको अपना गर्वीदा (अनुचर) बना लिया है आपको गुस्सा तो यत्न करने पर भी नहीं पाता, यही वली लोगों (महापुरुषों) की पहचान है। मुझे आपके तीन असूल नियम तो बहुत पसन्द आये मगर चौथा असूल कुछ जरूर खटकता है । [१] आप रात्रि को भोजन नहीं करते यह असूल तो हिकमत के लिहाज से बहुत अच्छा है, रात्रि को भोजन न करने वाले को हैजे की शिकायत बहुत कम होती है। [२] श्राप गर्म पानी पीते हैं, यह और भी अच्छा असूल है, गर्म पानी पीने वाले को पानी की लाग नहीं होती। [३] आप हमेशा छाया में सोते हैं इससे आसमानी हवा से बचाव रहता है और कई तरह की बिमारियों के आक्रमण से छुटकारा मिलता है इससे प्रतीत होता है कि आपके मजहबी पेशवा बड़े भारी हकीम होने चाहिये ? आचार्यश्री-इसमें क्या शक है, सर्वज्ञ वीतराग परमेश्वर से क्या कोई बात छिपी हुई है ? इस दृष्टि से इनको बड़े दर्जे के वैद्य कहने में भी कोई हर्कत नहीं। दुनिया के हकीम तो मात्र शारीरिक व्याधि की चिकित्सा करते हैं और सर्वज्ञ तो भव रोग के कारणभूत शुभाशुभ कर्म को भी जानते हैं । परन्तु हमारा वह चौथा असूल कोनसा है जो कि आपको पसन्द नहीं आया ? मुन्शीजी-महाराज ! जरा कहते हुए संकोच होता है मगर आप पूछते हैं इसलिये कहे देता हूँ, है तो बडी धृष्टता। कहो बड़ी खुशी से कहो इसमें संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं, प्राचार्यश्री ने बड़े मधुर शब्दों में उत्तर दिया। मुन्शीजी-महाराज ! श्राप वली पुरुष हैं, बड़े आलम फाजिल हैं, और आपका लोगों पर प्रभाव बड़ा है, फिर इतने बड़े सन्त होते हुए आप दर दर से भीख मांग कर लाते और खाते हैं यह असूल आपका मुझे बिलकुल पसन्द नहीं आया । कहो ठीक है न ? - श्राचार्यश्री-मुन्शीजी ! आपको हमारी यह शास्त्र-सम्मत भिक्षावृत्ति पसन्द नहीं आई इसमें आपका कोई कसूर नहीं, आपको हम साधुओं के नियमों का पूरा २ ज्ञान नहीं इसलिये आप ऐसा कह रहे हैं वरना यह असूल तो बाकी के असूलों से भी उत्तम असूल है। इस पर भी यदि आपको हमारी भिक्षावृत्ति अच्छी नहीं लगती तो हम उसे छोड़ देते हैं मगर आप हमको कोई ऐसा रास्ता बतलायें कि जिससे हमारे नियमों के अन्दर कोई बाधा न पहुंचे और मांगना भी न पड़े ? आप पहले हमारे नियमों को सुन लीजिये ताकि उनका संरक्षण करते हुए आपको कोई निर्दोष मार्ग मिल जावे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478