Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

Previous | Next

Page 405
________________ ३७४ . नवयुग निर्माता श्रावकवर्ग-महाराज ! यह तो हम भी जानते हैं कि अभी चौमासे में काफी देर है और तब तक आपश्री यहीं पर विराजे रहें यह तो किसी खास कारण के सिवा सम्भव ही नहीं। कारण कि बिना किसी खास कारण के मर्यादा से अधिक दिन एक ही स्थान पर ठहरने की साधु के लिये भगवान की आज्ञा भी नहीं है । हमारी प्रार्थना का मतलब तो यह है कि चतुर्मास से पहले का समय तो आप खुशी से इधर उधर के क्षेत्रों में विचरें परन्तु चौमासा यहां पर करने की हमारी प्रार्थना को श्राप अवश्य स्वीकार करने की कृपा करें। आचार्यश्री-अच्छा भाई ! जब चौमासा करने का समय आवेगा उस वक्त तुम्हारी विनति को सबसे पहले मान दिया जायेगा। तुम्हारी विनति के रहते हुए अन्य क्षेत्र की विनति तुमको पता दिये बिना स्वीकार नहीं की जावेगी । बस फिर क्या था सबके मन उत्साह से भरपूर हो गये सबने मिलकर भगवान के नाम का जयकारा बुलाया और प्रभावना लेकर हर्ष पूरित हृदय से अपने अपने घरों को चल दिये। आहार पानी के वक्त जब सब साधु एकत्रित हुए उस वक्त आचार्यश्री ने साधुओं को सम्बोधित करते हुए फर्माया कि यह नया क्षेत्र है, यहां कुछ कष्ट तो जरूर होगा परन्तु क्षेत्र बन जावेगा, यदि तुम्हारा सब की सम्मति हो तो चौमासा यहां पर करने का निश्चय किया जावे ! सब साधुओं ने हाथ जोड़कर कहा कि गुरुदेव जैसी आपकी इच्छा और आज्ञा हो हम सबको शिरोधार्य है । कष्ट की तो हमें रत्ती भर भी चिन्ता नहीं, इसलिये खुशी से आप यहां पर चातुर्मास करने का विचार निश्चित करलें ! तब, समय आने पर पट्टी में ही चातुर्मास करना यह सुनिश्चित हो गया। एक मास तक आचार्यश्री पट्टी में विराजे और आपके प्रतिदिन के धर्म प्रवचनों से वहां के श्रावकों पर धर्म का अच्छा रंग चढ़ गया । और लोगों का आपकी ओर अधिक आकर्षण बढ़ा। $ ___ पट्टी से विहार करके कसूर होते हुए श्राप अमृतसर पधारे । यहां के विशाल गगन चुम्वी मन्दिर में-[ जो कि उस वक्त तैयार हो चुका था] भगवान अरनाथ स्वामी की भव्य प्रतिमा को प्रतिष्ठित करने का शुभ मुहूर्त सं० १६४८ की वैसाख शुक्ला षष्टी गुरुवार के दिन का निश्चित हुआ । शास्त्र-विधि के अनुसार प्रतिष्ठा कराने के लिये बड़ोदे से श्रीयुत गोकुलभाई दुल्लभदास जौहरी और श्रीयुत नानाभाई हरजीवनदास गान्धी को बुलाया गया। उन्होंने प्रतिष्ठा का कार्य शास्त्र-विधि के अनुसार बड़ी अच्छी तरह से सम्पन्न किया । इस प्रतिष्ठा-महोत्सव में बाहर से आने वाले भाइयों ने भी बड़ा अच्छ! भाग लिया। अमृतसर के इतिहास में यह प्रतिष्ठा-महोत्सव भी अपना असाधारण स्थान रखता है। ६ पहले तो पट्टी में मात्र पांच सात घर ही श्रावकों के थे परन्तु अापके सदुपदेश से इस वक्त पट्टी में अनुमान अस्सी घर श्रावकों के हैं जो कि शुद्ध सनातन जैनधर्म के पूरे २ अनुरागी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478