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महाशय लेखराम का समागम
सरखाओ इनको नीचे लिखे वेद मन्त्रों से
वेदाहमेतं पुरुषं महान्त -
मादित्य वरणं तमसः परस्तात् ।
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तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति
नान्यः पन्था विद्यते यनाय ||
मेरे इस सारे विवेचन का संक्षिप्त सार इतना ही है कि जैनदर्शन आत्मवादी है इसलिए वह आस्तिक है, तथा वह ईश्वरवाद का समर्थक अथच उपासक है । परन्तु एकेश्वरवाद और उसके सृष्टि कर्तृत्ववाद को वह स्वीकार नहीं करता, यदि इस दृष्टि से आप उसे अनीश्वरवादी कहें तो उसे यह अभिमत ही है । आपके प्रश्न का यह मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार यथार्थ उत्तर दे दिया है। इससे आपके मन को संतोष मिला है या कि नहीं यह तो आप ही जान सकते हैं।
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पंडित लेखरामजी - स्वामीजी ! मैं सच कहता हूँ आज आपके दर्शन और सम्भाषण से मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है मैं तो प्रथम यही समझता था कि आप केवल जैन दर्शन के ही ज्ञाता होंगे परन्तु आप तो वैदिक दर्शनों तथा वेदों के भी विशेषज्ञ प्रमाणित हुए हैं। मैंने आपके सम्भाषण को बड़ी श्रद्धा और सावधानता से सुना है। और उसका मेरे हृदय पर काफी प्रभाव हुआ है। अच्छा अब फिर कभी दर्शन करूंगा, नमस्ते ! उत्तर में आचार्यश्री ने धर्मलाभ कहा और पंडितजी वहां से चल दिये प्राचार्यश्री की विवेचन शैली की मन में भूरि २ प्रशंसा करते हुए ।
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