Book Title: Navyuga Nirmata
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 374
________________ अध्याय ६७ "गुजरात से पुन: पंजाब की ओर" पालनपुर से विहार करके आबूजी सिरोही तथा पंचतीर्थी होकर आप पाली शहर में पधारे। यहां आपने मुनि वल्लभविजय, लब्धिविजय, शुभविजय, मानविजय, मोतीविजय और ज्ञानविजयजी इन छै नवीन साधुओं को योगोद्वहन कराकर पुनः संस्कार रूप छेदोपस्थापनीय चारित्र प्रदान किया। आचार्य पदवी को अलंकृत करने के बाद गुरुदेव ने सर्वप्रथम यहीं पर योगोद्वहन कराया। इससे पूर्व तो श्री मुक्तिविजयमूलचन्दजी गरिण महाराज के पास ही सब साधुओं का योगोद्वहन कराया जाता था। इनके स्वर्गवास होजाने के बाद आपने यह योगोद्वहन कराया । पाली से विहार करके आचार्य श्री जोधपुर में पधारे और सम्वत् १९४६ का चातुर्मास आपने जोधपुर में किया । श्रावकों की अत्यधिक अभिलाषा से प्रतिदिन के व्याख्यान में श्री हेमचन्द्राचार्य विरचित योगशास्त्र वाचते रहे । यहीं पर आपको डाक्टर ए. एफ. रुडोल्फ हार्नल साहब के जरिये यूरोप में छपा हुआ ऋग्वेद का पुस्तक बृटिश सरकार के आबू के एजेंट टुदी गवर्नर जनरल की मार्फत भेट स्वरूप मिला । जोधपुर का चातुर्मास सम्पूर्ण करके वहां से विहार करते हुए आप अजमेर पधारे। यहां आपके पधारने पर समवसरण की रचना हुई और धर्म की अच्छी प्रभावना हुई। अजमेर से विहार करके जयपुर और अलवर होते हुए आप दिल्ली में पधारे। Jain Education International For Private & Ponal Use Only www.jainelibrary.org

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