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अध्याय 80
“फाटण में एक मास"
राधनपुर से बिहार कर करके प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि शिष्य परिवार के साथ अण जामपुर और ऊंधरा आदि ग्रामों में होते हुए पाटण नगर में पधारे । पाटण के श्री संघ ने आप श्री का बड़े उत्साह से स्वागत किया और आप श्री का पधारना अपने लिये अहो भाग्य समझा।
पाटण में अनुमान २५०० घर श्रावकों के और ५०० जिन मन्दिर हैं यहां पर विराजमान श्री पंचासरा पार्श्वनाथ के दर्शन किये । पार्श्वनाथ प्रभु का यह मन्दिर बडा ही भव्य है, श्री बनराज चावड़ा ने यहां प्रभु की यह प्रतिमा श्री शीलगुण सूरि द्वारा प्रतिष्ठा करा कर विराजमान करी थी। इस मन्दिर में श्री वनराज चावड़ा की मूर्ति भी है। इसके अतिरिक्त पाटण के कई एक पुराने पुस्तक भण्डार भी हैं, जिनका
आपने अच्छी तरह से निरीक्षण किया और बहुत सी उपयोगी पुस्तको की नकलें करवाई । यहां पर अनुमान एक मास रह कर राधनपुर के श्री संघ की आग्रह भरी विनती से आप फिर राधनपुर पधारे और १६४४ का
हीं पर सानन्द व्यतीत किया।
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