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भावनगर के राजा से मिलाप और वेदान्त' चर्चा
• श्री आनन्दविजयजी-यह तो आपकी सज्जनता है जो कि मेरे लिये इतना बहुमान प्रदर्शित कर रहे हैं । वास्तव में देखा जाय तो वस्तु-तत्व के निर्णय में आप.जैसे उदार मनोवृत्ति के विचारशील पुरुष ही सफल हो सकते हैं । संकुचित मनोवृति के हठी और दुराग्रही पुरुष तो इससे वंचित ही रहते हैं।
राजा साहब-अच्छा महाराज! अब एक बात की और कृपा करो ! "ब्रह्मसत्य और जगत् मिथ्या" इस वेदान्त सिद्धान्त का क्या अाशय है ?
श्री अानन्दविजय जी-इस सिद्धान्त के मानने वाले आपके गुरुजो सामने हो तो बैठे हैं आप इन्हीं से पूछिये न ?
स्वामी आत्मानन्दजी-(स्वगत) यदि इस विषय की चर्चा इन से चल पड़ी तो मुझे पीछा छुड़ाना कठिन हो जायगा, इनकी असाधारण विद्वत्ता और प्रतिभा को देखते हुए इनसे उलझना कोई मामूली बात नहीं, आज तक तो राजा साहब और दूसरी सनातनधर्मी प्रजा में मेरी प्रतिष्टा बनी हुई है एवं सभी मुझे वेदान्त आदि दर्शन शास्त्रों के प्रकाण्ड विद्वान समझते हैं अगर श्रानकी इस दार्शनिक चर्चा में मेरे पक्ष, में जरा जितनी भी कमजोरी आगई तो सारा गुड़ गोबर हो जावेगा। इस लिये नीति से काम लेना चाहिये । (प्रकट में ) महात्माजी ! मैं तो इन्हें रोज ही सुनाता रहता हूँ और ये सुनते रहते हैं । परन्तु आपका पुण्य सहयोग तो आज ही मिला है । इस लिये मेरी और राजा साहब दोनों की यही इच्छा है कि इस विषय में
आप ही अपने मुखारविन्द से फर्माने की कृपा करें । आपने राजा साहब के पहले प्रश्न के उत्तर में जैनदृष्टि से जो कुछ प्रतिपादन किया उससे हम लोगों को बहुत कुछ नवीन जानने को मिला है । आपकी वर्णन शैली निसन्देह अभिनन्दनीय है । राजा साहब के इस दूसरे प्रश्न के सम्बन्ध में जैन दृष्टि से आप उस पर जो कुछ प्रकाश डालेंगे उससे भी हमें कुछ नवीन हो जानने को मिलेगा । इसलिये राजा साहब की इच्छा है कि आप ही इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने की कृपा करें । क्यों ठीक है न राजा साहब ?
राजा साहब-हां महाराज ! बिलकुल ठीक। मैंने तो इसी विचार से यह प्रश्न किया था कि श्राप श्री का आज यहां पर पधारना हमारे किसी विशेष पुण्य के उदय से हुआ है और आप तो हमारे पास ही हैं । जब चाहें तब पूछ सकते और सुन सकते हैं । इसलिये प्रस्तुत प्रश्न के सम्बन्ध में आप श्री (मुनि श्री आनन्दविजयजी) से ही कुछ सुनने की मेरी अभिलाषा है ?
श्री आनन्दविजयजी-अच्छा राजा साहब ! यदि आपकी ऐसी ही भावना है तो मुझे भी यथामति कहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं है।
आपने कहा-अच्छा राजा साहब ! अपने यहां परस्पर सद्भाव से भेटने और सप्रेम वार्तालाप करने के लिए एकत्रित हुए हैं, किसी प्रकार के वादविवाद या जय पराजय की इच्छा से उपस्थित नहीं हुए,
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