________________
अध्याय ४६
"पुनः पंजाब को"
चातुर्मास की समाप्ति के बाद जोधपुर से विहार करके प्रामानुग्राम विचरते हुए शिष्य मंडली सहित आप दिल्ली और वहां से अम्बाले पधारे । आप और आपके शिष्य अन्य १५ साधुओं का प्राचीन जैन परम्परा के अनुरूप साधुवेष देखकर अम्बाला निवासी जनता-जो कि आपके चरणों में श्रद्धा रखती थी उसको बहुत ही आनन्द प्राप्त हुआ। इससे पहले आप जब अम्बाला में पधारे थे तब आप इस वेष में नहीं थे, उस समय आपका वेष ढंढ़क पंथ के साधुओं का था जिसे आपने अहमदाबाद में जाकर उतारा।
इस प्रकार के शास्त्र विहित साधु वेष को देखने का पंजाब की जनता को यह प्रथम ही अवसर प्राप्त हुआ था। इससे पहले तो वह प्रायः यही समझती थी कि ढूंढक साधुओं का जो वेष है वही जैन साधु का वेष है । परन्तु आज आपके वेष को देखकर ढूंढ़क पंथ और प्राचीन जैन परम्परा के साधु वेष में जो मौलिक विभिन्नता है उसका उसे प्रत्यक्ष साक्षात्कार होगया। महाराज श्री आत्माराम-आनन्द विजयजी की भावानुप्राणित द्रव्य साधुता ने पंजाब की जनता को पहले से भी अधिक प्रभावित किया। और उसकी धर्म विषयक आस्था को सक्रिय अथच प्रगतिशील होने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org