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बड़ी के राजा साहिब से भेट
महाराज श्री आनन्दविजयजी के इस कथन को सुनकर लींबड़ी दरबार ने हाथ जोड़ते हुए कहामहाराज ! आपश्री ने आज हम लोगों पर जो कृपा की है उसके लिये हम सब आपके बहुत २ कृतज्ञ हैं । आप जैसे महापुरुषों के दर्शन किसी पुण्य विशेष के उदय से ही प्राप्त होते हैं - मेरा और मेरी प्रजा का यह अहोभाग्य है जो कि आप जैसे सत्पुरुष यहां पधारे। मेरे योग्य कोई सेवा हो तो फर्मावें ।
राजा साहब के इतने संभाषण के बाद उनके साथ में आये हुए दोनों पंडितों ने बड़ी नम्रता दिखाते हुए कहा - महाराज ! आज आपश्री के पुनीत दर्शनों से हम लोगों को जो अलभ्य लाभ हुआ है उसके वर्णन में हमारी जिल्हा असमर्थ है। आपके इस गम्भीर शास्त्रीय प्रवचन से हम लोगों को बहुत कुछ नवीन जानने को मिला है। क्षमा करना पहले तो हम लोग अपनी विद्वत्ता के आवेश में आकर यही समझते थे कि आप केवल जैन शास्त्रों के जानकार एक साधारण कोटि के साधु होंगे, परन्तु आप तो जैन जैनेतर सभी दर्शनों के पारगामी प्रमाणित हुए हैं। ईश्वर कर्तृत्व के विषय में आपने जो गम्भीर मार्मिक और तलस्पर्शी विचार हम लोगों को दिये हैं वे नितरां प्रशंसनीय हैं और हम लोग उनपर अवश्य विचार करेंगे । आप जैसे परमत्यागी और परम मनीषी सत्पुरुषों के पुनीत दर्शन भी सद्भाग्य से ही प्राप्त होते हैं, आपके विद्वत्ता पूर्ण सौम्य व्यक्तित्व के आगे हम नत मस्तक हैं, आप जैसे महापुरुषों का अधिक से अधिक समागम मिलता रहे यही प्रभु से प्रार्थना है, और यदि हम लोगों से आपश्री का किसी प्रकार का अविनय हुआ हो तो उसके लिये हम आप से क्षमा चाहते हैं ।
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इतना निवेदन करने के बाद राजा साहब और साथ श्रये पंडितों ने महाराज श्री को नमस्कार किया और उत्तर में सप्रेम धर्म लाभ प्राप्त करके वहां से विदा हुए, महाराज श्री से कुछ और निवास करने तथा फिर भी इस नगर को अपने चरण कमलों से पावन करने की प्रार्थना करके ।
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