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अध्याय ७८ वंबई से आमंत्रण
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आपके आदर्श व्यक्तित्व में असाधारण आकर्षण था। उसने पंजाब के अतिरिक्त गुजरात की जैनप्रजा को भी अपनी ओर इस तरह आकर्षित किया जैसे चुम्बक पाषाण लोहे को अपनी ओर खैच लेता है । सूरत के चातुर्मास में उपस्थित होने वाले हुक्ममुनि प्रकरण ने तो आपके व्यक्तित्व को और भी ऊंचा उठा दिया और गुजरात की जैनप्रजा का आकर्षण और भी बढ़ा, फलस्वरूप बम्बई के श्रीसंघ ने
आपको बम्बई पधारने की अाग्रह भरी विनति की और आशा प्रकट की कि बम्बई के श्रीसंघ की इस विनीत प्रार्थना को आपश्री अवश्य स्वीकार करने की कृपा करेंगे तथा आप श्रीसंघ की आग्रह भरी विनति को अवश्य मान देने की कृपा करेंगे ? इस विश्वास से “वसई" के रेल्वे पुल पर से उतरने के लिए रेल्वे को हरजाने की रकम देने का भी श्रीसंघ ने निश्चय कर लिया। परन्तु क्षेत्र फर्सना न होने से इच्छा होते हुए भी आप न पधार सके । इस लिए सूरत से बम्बई की ओर बिहार न करके बड़ौदे की तर्फ को बिहार कर दिया और क्रमशः भरुच, मियांगाम और डभोई होते हुए बडौदे पधारे । यहां आते ही सूरत निवासी श्री कस्तूरीलाल को दीक्षा देकर "कुंवर विजय” नाम रक्खा और श्री वीर विजयजी का शिष्य घोषित किया।
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