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नवयुग निर्माता
इतना कहने के बाद आपने गुरु महाराज के चरणों का स्पर्श करते हुए उनकी चरण धूलि से अपने मस्तक को सुशोभित किया और गुरु महाराज ने मंगलीक सुनाते हुए सप्रेम आशीर्वादरूप धर्मलाभ दिया । उस समय का यह दृश्य कितना आकर्षक था यह कहते नहीं बनता । गुरुदेव की निस्पृहता और सेठजी की गम्भीरता और नम्रता की परख तो वेही कर सकेंगे, जिन्हें उन जैसा उदार हृदय उपलब्ध हुआ है। तदनन्तर गुरुमहाराज ने अपने शिष्यवर्ग सहित श्रागे को प्रस्थान किया और सेठजी अन्य पुरुषों के साथ पीछे को लौटे सिद्धगिरि की छाया में चार मास व्यतीत करने की शुभ भावना को लेकर ।
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