________________
अध्याय ३७
श्री सिद्धाचल की यात्रा के लिये
इस प्रकार अहमदाबाद में वीरभाषित जैन धर्म के तात्त्विक स्वरूप का दिग्दर्शन कराने और श्री शान्तिसागर के एकान्त पक्ष का निरसन करने में सफलता प्राप्त करके श्री आत्मारामजी ने श्री विश्नचन्दजी
आदि सब साधुओं के साथ अहमदाबाद से तीर्थराज श्री सिद्धाचल की ओर प्रस्थान किया । ग्रामानुग्राम विचरते और धर्मोपदेश देते हुए आप पालीताणा पधारे।
प्राचीन जैन परम्परा के कथा साहित्य में श्री सिद्धाचल तीर्थ की जितनी महिमा वर्णन की गई है इतनी दूसरे तीर्थ की शायद ही की गई हो। यहां प्रति वर्ष लाखों यात्री इस तीर्थराज की यात्रा करने को आते हैं । कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा के दिन तो यात्रियों का इतना समारोह होता है कि पालीताणा की विशाल धर्मशालाओं में ठहरने को स्थान मिलना कठिन हो जाता है । थोड़े शब्दों में कहें तो श्वेताम्बर जैन परम्परा का यह सर्वोत्कृष्ट तीर्थ है । और इसे शाश्वता तीर्थ माना गया है। यहां पर्वत पर श्री आदीश्वर भगवान का सर्वोत्कृष्ट विशाल मन्दिर है और इसकी भिन्न २ ट्रंकों पर लगभग २७२० जिनमन्दिर हैं । दूसरे दिन प्रातःकाल श्री आत्मारामजी अपने सब साधुओं को साथ लेकर पर्वत पर चढ़ने के लिये तलहटी पर पहुंचे और पर्वत पर चढना आरम्भ किया। आगे आप और आपके पीछे श्री विश्नचन्दजी आदि १६ साधु चल रहे थे। सबके हृदय उत्साह पूर्ण और हर्षातिरेक से लबालब थे। और जिस रूप में आप चल रहे थे उससे ऐसा प्रतीत होता था जैसे कोई विजय प्राप्त वीर सेनानी सेना को साथ लेकर विजय की सूचना देने के लिये उत्साह पूर्वक अपने स्वामी के पास जा रहा हो । तथा ज्ञान दर्शन और चारित्र की इस सजीव प्रतिमा की देदीप्यमान भव्य प्राकृति को देखकर अन्य यात्री लोग मार्ग छोड़कर आपके चरणों में झुक जाते । अस्तु
___ श्री सिद्धगिरि के भव्य प्रासाद में विराजमान श्री आदिनाथ भगवान के पुण्य दर्शन की चिरंतन अभिलाषा की पूर्ति का पुण्य अवसर आया और ऊपर चढ़ते २ सब साधुओं के साथ आप आदीश्वर भगवान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org