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नवयुग निर्माता
या आत्मानन्द नाम के एक विद्वान् सन्यासी साधु भी पधारे हुए थे जो कि पंजाब के रहने वाले थे और अच्छे वक्ता थे । भावनगर की सनातन धर्मी जनता में उनकी काफी प्रतिष्ठा थी अतएव भावनगर के राजा साहब भी कभी २ उनके पास आया जाया करते थे
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इधर महाराज श्री आत्माराम आनन्दविजयजी को भी उनके विद्वता पूर्ण प्रभावशाली व्याख्यानों भावनगर में काफी विख्यात कर दिया था उनकी आकर्षक और मोहक व्याख्यानशैली का जैनेत्तर जनता भी बहुत प्रभाव पड़ा । घर घर में लोग उनकी प्रशंसा के गीत गाने लगे । स्वामी आत्मानन्दजी के भक्तों में से भी बहुत से लोग आपका प्रवचन सुनने आते थे। एक दिन बात बात में स्वामी जी के कुछ भक्तों ने उनसे कहा कि महाराज ! यहां आत्माराम - श्रानन्दविजय नाम के एक पंजाबी जैन साधु आये हुए हैं उनका शारीरिक सौन्दर्य इतना आकर्षक और मोहक है कि दर्शन करते हुए नेत्र तृप्त नहीं होते, एवं उनकी वाणी के माधुर्य की तो प्रशंसा करते नहीं बनती, उसे पान करने के लिये कान सदा तृषित ही बने रहते हैं । सच पूछो तो जिस समय वे बोलते हैं हमें तो उस समय यही प्रतीत होता है कि हमारे स्वामीजी - (आप) ही दूसरे रूप में बोल रहे हैं ।
स्वामी आत्मानन्दजी के मन पर अपने भक्तों के इस कथन का अव्यक्त रूप से अच्छा प्रभाव पड़ा, फलस्वरूप उसमें श्री आत्माराम - आनन्द विजयजी को मिलने की सहज उत्सुकता पैदा हुई । वे मन ही मन विचारने लगे- 'यद्यपि साम्प्रदायिक विचारधारा से तो उनका हमारा कोई मेल नहीं बनता परन्तु मानवता के नाते तो हमारा उनका मेल हो सकता है उसमें तो कोई आपत्ति नहीं आती। वे भी साधु हैं, त्यागी हैं, और हम भी, बल्कि उनका त्याग तो हमसे कहीं अधिक है । इसके अतिरिक्त वे पंजाब के हैं और मैं भी पंजाबी हूँ अतः साधुता के नाते से एक होने के साथ २ देश के नाते से भी हम एक हैं । तब उनसे मिलने में हानि क्या ? अस्तु, राजा साहब के आने पर उनके साथ बात करके इसका निश्चय किया जायगा।
दूसरे दिन जब राजा साहब वहां आये तो स्वामीजी ने महाराज श्री आत्माराम - श्रानन्द विजयजी से भेट करने का प्रस्ताव करते हुए कहा- 'मैंने सुना है कि आपके इस नगर में कुछ दिनों से आत्मारामआनन्द विजय नाम के एक पंजाबी जैन साधु आये हुए हैं जो कि अच्छे विद्वान और सुयोग्य वक्ता तथा उदार मनोवृत्ति के हैं । वे पंजाब के हैं और मेरी जन्मभूमि भी पंजाब है। वे दूर से चलकर यहां पधारे हैं और मैं भी यहां पर आया हुआ हूँ, ऐसी परिस्थिति में उनसे मिलने की सहज उत्कंठा सी हो रही है, कहिये आपका इसमें क्या विचार है ?"
राजा साहब - महाराज ! यह तो आपका बहुत ही अच्छा प्रस्ताव है, एक देश के उपजे हुए दो महापुरुष विदेश में आकर एक दूसरे को प्रसन्न चित्त से भेटें इससे अधिक प्रसन्नता की और क्या बात हो
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