________________
नियम के प्रकाश में मिलाप
१६३
तो यह भी चाहता हूँ कि तुम लोग उनके जीवन तक उनके साथ ही बने रहो, भले ऊपर से ही सही ! इससे उनकी आत्मा को कुछ न कुछ सन्तोष तो बना रहेगा, आगे तुम्हारी जो इच्छा। इतने प्रासंगिक वार्तालाप के बाद श्री आत्मारामजी श्री विश्नचन्दजी का हाथ पकड़कर अपने स्थान पर- [जहां उतरे हुए थे] ले गये । और एकान्त में बैठकर, किस २ क्षेत्र में कितना काम हुआ और आगे के लिये कहां और किस प्रकार काम करना है' इत्यादि सारे कार्यक्रम का सिंहावलोकन किया।
दूसरे दिन श्री विश्नचन्दजी ने लुधियाने को विहार कर दिया और श्री आत्मारामजी ने एक दिन पीछे विहार किया। परन्तु दैवयोग से बीच में वर्षा हो जाने के कारण रास्ते में सात कोस पर आने वाले "बोपाराय" नाम के ग्राम में दोनों का मेल हो गया ! और दोनों अपने २ साधुओं के साथ एक ही मकान में ठहरे । वहां किसी प्रोसवाल का घर न होने से किसी प्रकार के उपद्रव की भी आशंका नहीं थी । इसलिये सब साधु निशंक होकर एक दूसरे से ज्ञानचर्चा करते रहे और सन्ध्या का प्रतिक्रमण भी सबने एक साथ ही किया।
प्रतिक्रमण के समय श्री आत्मारामजी ने विश्नचन्दजी आदि साधुओं से कहा-लो आज मैं तुम्हें श्री महावीर स्वामी के शासन में विहित प्रतिक्रमण को विधि सहित कराऊ? सबने सहर्ष स्वीकृति दी। प्रतिक्रमण और उसकी विधि को देखकर सारे चकित हो गये और कहने लगे-महाराज ! इस प्रकार विधिसहित प्रतिक्रमण करने का कभी हम लोगों को भी प्रत्यक्ष अवसर मिलेगा ? अथवा हम इसी पंथ की फांसी के रस्से को गले में डाले हुए यहां से चल बसेंगे ?
श्री आत्मारामजी-जरा धैर्य रक्खो, समय पर सब कुछ ठीक हो जावेगा।
श्री विश्नचन्दजी-भाई शान्ति रक्खो, इतनी उतावल न करो, अन्यथा हमारा बना बनाया खेल बिगड़ जावेगा। यदि धैर्य से काम लोगे तो तुम्हारा अपना भी भविष्य बन जायगा और जनता को भी उचित लाभ पहुंचेगा । दूसरे दिन प्रातःकाल श्री विश्नचन्दजी ने लुधियाने को विहार कर दिया और पमाल होकर लुधियाने पहुंचगये, तथा श्री आत्मारामजी एक दिन बाद लुधियाने पहुँचे । दोनों अपने अपने साधुओं के साथ अलग अलग मकान में ठहरे ।
TAIN
M
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org