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प्रत्यक्ष सहयोग
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श्री आत्मारामजी - अच्छा जो हुआ सो ठीक, अब इसकी तो चिन्ता करना व्यर्थ है । अतो अपना भावी कार्यक्रम निश्चित करना चाहिये । सो यदि तुम लोगों को इसी देश में विचरना हो तब तो शीघ्र से शीघ्र पंजाब के ग्राम ग्राम और नगर नगर में फैल जाओ और अधिक से अधिक गृहस्थों को शुद्ध सनातन जैनधर्म के श्रद्धालु बनाने का प्रयास करो, इसके लिये जितना भी प्रयास हो सके करो ! यदि अधिक नहीं तो कम से कम बराबर का बल तो अवश्य हो जाना चाहिये। फिर आप खुशी से इस देश में विचर सकते हैं बिना, अपने अनुयायी श्रावकों के इस पंचमकाल में संयम का पालन नितान्त कठिन है । और यदि इस देश में विचरने की तुमारी इच्छा न हो तो चलो सीधे गुजरात देश में चलें, वहां चलकर किसी सुयोग्य साधु से शुद्ध सनातन जैन धर्म की दीक्षा अंगीकार करें और उसी देश में विचरें ! यह बात जान बूझकर आपने साधुओं से कही ताकि उनका आशय मालूम होजावे, वैसे आपने तो इसी देश में वीर भाषित जैन परम्परा का झंडा गाढ़ने का दृढ़ संकल्प कर रक्खा था, अन्य साधुओं की तो आप अनुमति मात्र चाहते थे ।
आपके इस कथन को सुनकर श्री विश्नचन्दजी आदि साधु बोले - महाराज ! हमारा तो इसी देश में विचरने का संकल्प है, और आपने जो धर्म प्रचार की बात कही सो उसके लिये हम हर प्रकार से तैयार हैं, आपके नेतृत्व में हम अधिक से अधिक प्रयत्न करेंगे । हम दो दो तीन तीन की टोली बनाकर सारे पंजाब में फिर निकलेंगे, वैसे तो आज भी आपकी कृपा से पंजाब के हर एक ग्राम और नगर में आपके सेवकों की पर्याप्त संख्या विद्यमान है। मालेरकोटला में निश्चित किये गये कार्यक्रम के अनुसार हमने अपना प्रयास चालु रक्खा और उसमें हमें काफी सफलता प्राप्त हुई है ।
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जिस समय यह मंत्ररणा हो रही थी उसी समय श्री आत्मारामजी के पास उनके नेतृत्व में काम करने वाले २० साधु थे । उनमें १२ तो श्री विश्नचंदजी आदि पूज्य अमरसिंह के समुदाय के और आठ साधु श्री योगराजजी के समुदाय के थे। इस प्रकार २० ही साधु महाराज श्री आत्मारामजी का आशीर्वाद लेकर चारों तरफ निकल पड़े और सभी क्षेत्रों में न्यूनाधिक रूप में ढूंढ़क पंथ का चिरकाल का बिछा हुआ बिछौना उठाकर प्राचीन जैन परम्परा का बिछौना बिछा दिया । उनके सतत् प्रयास और श्री आत्मारामजी की आन्तरिक प्रेरणा से पंजाब के हर क्षेत्र में प्राचीन जैनधर्म का भंडा गड़ गया । फलस्वरूप- - होशियारपुर जालन्धर, नकोदर, जंडियाला, अमृतसर, पट्टी, बैरोवाल, कसूर, नारोवाल, सनखत्तरा, जीरा, मालेर कोटला, अम्बाला, लुधियाना, लाहौर, गुजरांवाला, रामनगर, पसरूर, रोपड़, जेजों और जम्मू आदि स्थानों में वीर भाषित प्राचीन जैन धर्म के अनुयायियों की संख्या सात हजार के करीब होगई !
इस प्रकार श्री आत्मारामजी को श्री विश्नचंदजी आदि अन्य साधुओं के सहयोग से अपने कार्य में जो सफलता प्राप्त हुई उसका एक मात्र श्रेय उनकी सत्यनिष्ठा और विशद ज्ञान सम्पत्ति को है ।
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