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साम्प्रदायिक संघर्ष, प्रत्यक्ष रूप में
श्री विश्नचन्दजी आदि योग्य साधुओं का निकल जाना और उनके द्वारा खुल्लमखुल्ला ढूंढक पंथ के विरुद्ध प्रचार का होना एवं सैंकड़ों नहीं हजारों गृहस्थों का ढूंढक पंथ छोड़कर प्राचीन जैन परम्परा में प्रविष्ट होना आदि कुछ ऐसी बातें थी जिनसे पूज्य अमरसिंहजी को घबराहट पैदा होना अनिवार्य था । उस समय चारों तरफ साम्प्रदायिक संघर्ष मचा हुआ था, विचार विनिमय ने विचार विरोध का स्वरूप धारण कर लिया था। इसके अतिरिक्त श्री आत्मारामजी और उनके सहयोगी साधु जहां कहीं भी जायें वहीं पर साधु साधु में और गृहस्थ गृहस्थ में तथा साधु और गृहस्थों में विचारों की खूब ले दे होती और कभी २ गर्मागर्मी भी हो जाती, तात्पर्य कि वह, क्षेत्र [ जिसमें कि श्री आत्माराम और उनके साधु जाते ] विचार संघर्ष का एक खासा अखाड़ा बन जाता ।
यह तो सुनिश्चित सी बात थी कि ढूंढक पंथ का कोई साधु या गृहस्थ श्री आत्माराम साधु के सामने आने की ताब नहीं रखता था । सब चुपके २ अपने भक्तों को संभाल रखने में ही अपना कल्याण समझते थे । इधर समझदार लोग धड़ाधड़ ढूंढ़क पंथ को छोड़कर जैन धर्म के श्रद्धान को अंगीकार कर रहे थे उधर पूज्य श्री अमरसिंह और उनके साधु चिन्ता के सागर में गोते लगा रहे थे । पूज्यजी साहब को जहां गृहस्थों के चले जाने की चिन्ता थी वहां उनको शेष रहे साधुओं के निकल जाने का भी भय व्याप्त हो रहा था । ऐसी दशा में उनको धैर्य देनेवाला कोई प्रभावशाली साधु या गृहस्थ भी उनके पास नहीं था । तब पूज्यजी साहब ने अपने चुने हुए भक्तों को बुलाया और उनके सामने बड़े मार्मिक शब्दों में यह प्रस्ताव रक्खा - "मेरे अच्छे पढ़े लिखे १२ साधु तो मुझे छोड़कर आत्माराम के पास चले गये और उसके साथ मिलकर पंजाब के सब शहरों को बिगाड़ रहे हैं । यदि वे इसी तरह बिगाड़ते ही चले गये तो मेरे बाकी रहे इन साधुओं के लिये बड़ी मुश्किल का सामना होगा ! संभव है आहार पानी का मिलना भी कठिन हो जावे, इसलिये तुम लोगों को कोई योग्य प्रबन्ध करना चाहिये । यदि तुम लोग कोई उचित प्रबन्ध नहीं करोगे तो मैं इस देश को छोड़कर गारवाड़ आदि अन्य देशों में चला जाऊंगा, और हां पर अपना शेष जीवन पूरा करूंगा । इतना कहने के साथ ही आपके नेत्रों से दो मोती दुलक पड़े ।
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सब लोग हाथ जोड़कर - नहीं महाराज आप ऐसा न करें। हम लोग आपके परामर्श से इसके लिये अवश्य कोई उचित प्रबन्ध करेंगे। तदनन्तर पटियाला आदि दो तीन शहरों के ढूंढ़क गृहस्थों ने पूज्य अमरसिंहजी के कथनानुसार निम्नलिखित आशय के कुछ पत्र लिखाकर एक ब्राह्मण के द्वारा पंजाब के मुख्य २ शहरों में भिजवाये -
" पूज्य जी साहब का यह फर्मान है कि श्री आत्माराम और उनके साथी जितने भी साधु अपने ढूंढ़क मत से विपरीत श्रद्धा रखने वाले हैं और उसके विरुद्ध प्रचार करते हैं उनको मेरा कोई भी श्रावक
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