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नवयुग निर्माता
$ " सव्वलो भरिहंत चेहयाणं करेमि काउसग्गं वंदण वत्तियाए, पूयण बत्तियाए सक्कार बत्तियाए सम्माण वत्तियाए" इत्यादि ।
भावार्थ-सर्व लोक में स्थित अच्चयों तीर्थंकर प्रतिमाओं के बन्दन पूजन सत्कार और सम्मान के लिये मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । तात्पर्य कि तीर्थंकर प्रतिमाओं को साक्षात् श्रद्धापूर्ण हृदय से वन्दन करने, पूजन करने सत्कार और सम्मान करने का जो पारलौकिक फल साधक को प्राप्त होता है वह मुझे इस कायोत्सर्ग द्वारा प्राप्त हो, इस भावना से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । दूसरे शब्दों में कहें तो वन्दन पूजन सत्कार और सम्मान के स्थानापन्न मेरा यह कायोत्सर्ग हो, सारांश कि तीर्थंकर प्रतिमाओं के वन्दन पूजन सत्कार और सम्मान के निमित्त ही मैं यह कायोत्सर्ग कर रहा हूँ ।
परमार्थ - आवश्यक सूत्र के इस पाठ से अर्हचैत्यों के पूजन और सत्कार के निमित्त - तीर्थंकर प्रतिमाओं की पूजा और सत्कृति के लिए यति को भी - भावस्तवारूढ़ साधु को भी कायोत्सर्ग करने का निर्देश श्री तीर्थंकरादि ने किया है। और पूजन सत्कार ये दोनों द्रव्यस्तव - द्रव्यपूजा रूप ही हैं। अत: 'अनुमोदन रूप से द्रव्यस्तव - द्रव्यपूजा साधु के लिये भी शास्त्र विहित है, दूसरे शब्दों में साधु को गृहस्थों
द्वारा आचरण किये गये द्रव्यस्तव - अर्चन पूजन आदि के अनुमोदन की आज्ञा सूत्र में दी गई है । इस प्रकार श्री आत्मारामजी से आवश्यक सूत्रगत मूर्तिपूजा सम्बन्धी पाठ के भावार्थ और परमार्थ को सुनकर वे लोग बड़े चकित हुए और प्रसन्न चित्त से वन्दना नमस्कार करके वहां से बिदा हुए ।
$ छाया-सर्व लोके अर्हचैत्यानां करोमि कायोत्सर्ग बन्दन प्रत्ययं, पूजन प्रत्ययं, सत्कार प्रत्ययं
सम्मान प्रत्ययम् ॥
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