Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust
View full book text ________________ | भीमरुतुजत्रिविरचित शीनामाकराजाचरितम् देवद्रव्यं च तज्ज्ञात्वा, प्रत्यर्थन्यायधर्मवित्। राज्यकार्याणि कृत्वा ऽह-स्त्रितयेन स सैन्ययुक् / / समुद्रं बहु सत्कृत्य, यात्रार्थ व्यसृजन्नृपः॥६५॥ बाल्या महत्याऽध्यारोहत्, श्रीशत्रुअयपर्वतम् / / 7 / / अथ द्विगुणितोत्साहः, समुद्रः स्वकुटुम्बयुक्॥ स्नानादिसप्तदशभिर्भेद: सिद्धान्तभाषितैः॥ मुहूर्तान्तरमादाय, यात्रार्थ प्रास्थित द्रुतम् // 66 // स तत्र सूत्रयामास पूजामादिजिनेशितुः // 7 // चतुर्भिजिनरर्वाक, श्रीशत्रुअयतीर्थतः / / महापूजाध्वजारोपा-दिषु कृत्येष्वसौ तथा॥ यावद भुक्ते सरस्तीरे, श्रीकाश्चनपुरे पुरे // 67 // ददौ दानं यथा श्यामो, जज्ञे मेघोऽपि लज्जया॥७॥ तत्राऽपुत्र मृत भूपे, तावद् मन्त्राऽधिवासितैः॥ विधायाष्टाहिकां नागनामग्राहं जगत्पतेः॥ आगत्य पञ्चभिर्दिव्यै: राज्यं तस्मै ददे मुदा // 68 // पूजादानादिसत्कृत्यैः स निधानार्धमव्ययत् // 76 // गजारुढ: सितच्छत्रशाली चामरवीजितः॥ सिद्धक्षेत्रादथोत्तीर्य, स्वपुरं प्राविशन्नृपः॥ अन्वायमान: पकिः , स्तृयमान: कवीश्वरैः॥६९॥ रुद्धो राज्यासहिष्णुत्वाद्, वाणिजो दुष्टपार्थिवैः॥७७॥ चतुरजचमूचारविचित्राविलसत्पथः / / मिथः प्रवृत्त युद्धेऽथ, भग्नां वीक्ष्य निजां चमूम् / / राज्यतर्यध्वानपूर्यमाणब्रहमाण्डमण्डपः // 7 // श्रीसमुद्रनृपा यावत्, किंकर्तव्यजडोऽजनि।।७८॥ विलसत्तोरणं प्रोच्चपताकं प्रेक्ष्यनाटकम् // तावन्निबिडबन्धेन निबद्धान् योजिताअलीन् / वर्णाम्भ:सिक्तभूपाठव्यक्तस्वस्तिकसङ्कुलम् / / 71 // पादाग्रे लुठतो वीक्ष्य रक्ष रक्षेति जल्पतः॥७९॥ विचित्राल्लोचसम्पूर्णाऽऽपणश्रेणिविराजितम् / / विद्वेषिभूपतीन् सर्वान् प्रोन्मुच्य निजपुरुषैः। समुद्रपालभूपाल: सोत्सवं प्राविशत् पुरम् / / 72 // अहो। किमिति साश्चर्योऽ पृच्छत्तानेव भूपतीन् // 8 //
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