Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 13
________________ तुजातिविधित शीJHTTणाकारित तीर्थमालास्तवे-अतो धराधीश्वर! भारती भुवं ततो गतो वन राजा, चतुर्ज्ञाननिधीन् गुरून् / तथाऽधिगम्योत्तममानुषं भवम। ज्ञात्वा नत्वाऽन्तरायाणां हेतून् पप्रच्छ भक्तिभाक् // 39 // युगादिदेवस्य विशिष्टयात्रया विवेक्निा ग्राह्यमिदं फलं श्रियाः // 31 // गुरवो मनसा सामन्धरस्वामिजिनं ततः।। एवं श्रुत्वा नरेशोऽपि, तीर्थमाहात्म्यमद्भुतम् / / नत्वाऽप्राक्षरथ स्वाम्यप्यूचे तन्मनसाऽखिलम् // 40 // विसृज्य श्रेष्ठिनं यात्रा - निमित्तं लग्नमग्रहीत् // 32 // अन:पर्यायतो ज्ञानात् श्रीयुगन्धरसूरयः। लग्नक्षणे व्यतिक्रान्ते, ब्रह्मद्वारव्यथावशात्। सम्यग विज्ञाय वृत्तान्तं तं जगुर्भूपतिं प्रति // 41 // पश्चात्तापं दधद् भूपा, द्वितीयं लग्नमग्रहीत् // 33 // राजन्! सुखेषु दुःखेषु, मुख्यं कर्मैव कारणम् / तच्चार्जितम् त्वया पूर्व यथा मूलात् तथा शृणु // 42 // आकस्मिकसमुद्भूत - ज्येष्ठपुत्रव्यथावशात् / एकोनविंशत्यम्भोधि - कोटाकोटिप्रमाणतः। तस्मिन्नपि गते लग्ने, तृतीयं लग्रमाददे // 34 // कालात् परमतीतायां, चतु:संयुतविंशतौ // 43 // पट्टदेवीमहाकष्टाज्जातस्तस्याप्यतिक्रमः। जम्बूद्वीपस्य भरते, सम्प्रतिस्वामिवारके। स्वचक्रशङ्कया लग्नमत्यगात् तुर्यमप्यथ // 35 // उपाम्भोधि तामलिप्ती-नंगयां भ्रातरावभौ // 44 // अहो! पापी ममात्मेति, निन्दन् स्वं पञ्चमं नृपः। समुद्र - सिंही ज्येष्ठस्तु, निर्मल: पुण्यवानृजुः मुहूर्तमाददे तच्च परचक्रभयाद् गतम् // 36 // विपर्यस्त: कनिष्ठश्च, बदरीकण्टकाविव ॥४५॥(त्रिभिः कूलकम।) एवं भूपो व्यतिक्रान्ते, यात्राया लग्नपश्चके। भुवं खनद्भ्यान्ताभ्यां स्व- गृहे स्थूणार्थमन्यदा॥ तुमस्य कथं ज्ञास्या-मीति चिन्तातुरोऽभवत् // 37 // चतुर्विशतिदीनार - सहसनिधिराप्यत॥४६॥ . तावतोधानमायाताः, श्रीयुगन्धरसूरयः॥ देवद्रव्यमिदं नाग * गोष्ठिकेन निधीकृतम्।। इति विज्ञपयामास, भूपालं वनपालकः // 38 // इत्युक्तिगर्भ पत्रं च ज्येष्ठो दृष्ट्वैत्यभाषत // 47 // KA R I [3] * *** P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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