Book Title: Nabhak Raj Charitram Gujarati
Author(s): Merutungasuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 12
________________ श्रीरुतुजसरिविचित श्रीनाभाकराजाचरितम् श्रीशत्रुञ्जयस्तत्र यात्रया किं फलं नृपे / ये शुद्धभावेन निभालयन्ति भव्या महातीर्थमिदं कदाचित् / / पृच्छतीति भाग्यलभ्या: सभ्या: पौराणिका जगुः // 14 // किंश्वभ्रतिर्यग्भवसम्भव:स्यात्? नशेषगत्योरपि जन्म तेषाम् // 23 // इक्ष्वाकुभूमौ भरतेऽत्र पूर्व श्रीनाभिनामा कुलकृद् बभूव / श्रीमधुगादीशमुखात मुनीन्द्रास्तत तन्महातीर्थफलं निशम्य // सद्वल्लभाऽभून्मरुदेवी तस्याः कुक्षी जिन: श्री वृषभोऽवतीर्णः // 15 // श्री पुण्डरीक प्रमुखा निषेव्य तत्तीर्थमापु: समयेऽपवर्गम् // 24 // असङ्ख्यवर्षाणि न धर्मकर्माऽभिज्ञो जनोऽभूत् समयानुभावात् प्राप्ते शिवं श्रीऋषभे सतोऽस्य शत्रजये श्रीभरताख्यचक्री॥ प्रकाश्य तन्मार्गयुगं तदत्रा वतीर्य सोऽनीतिपथं लुलोप // 16 // अतिष्ठिपत रत्नमयीं सुवर्णप्रासादमध्ये प्रतिमां तदीयाम् // 25 // आदौ स पाणिग्रहणं विधाय, शतं सुतानां च विभज्य राज्यम। म। योऽस्य नाम हृदि साधु वावदि: क्लेशलेशमपि नो स सासहिः। - भुक्त्वा सुखं नीतिपथं विधाय तप्त्वा तपो ज्ञानमनन्तमाप // 17 // योऽस्य वर्त्मनि मुदेव चाचलि: संसृतौ न कदापि पापतिः॥२६॥ ततः स धर्म दशधोपदिश्य प्रबोधयन भारतभव्यसत्वान। नाऽतः परं तीर्थमिहास्ति किञ्चिद् नात: परं वन्द्यमिहास्ति किश्चित्॥ शैलेसुराष्ट्राभरणेऽधिरुह्य क्वाचितूप्रियालुद्रुतलं सिषवे // 18 // नाऽत: परं पूज्यमिहास्ति किश्चिद्, नातः परं ध्येयमिहास्ति श्रीपुण्डरीकं गणनायकं श्रीप्रभुः पुरस्कृत्य तदेत्यवादीत्। इदं महातीर्थमनाघनन्तं कालेन सङ्कोचविकासधर्मि // 19 // किधित् // 27 // मूले पृथः सम्प्रति योजनानि, पञ्चाशदूध्वं दश योजनानि॥ पञ्चाशदादौ किल मूलभूमेर्दशोर्श्वभूमेरपि विस्तरोऽस्य / उच्चस्तथाऽष्टावथ साप्तहस्तो भूत्वा पून: प्राप्स्यति बद्धिमेवाम // 20 // उच्चत्वमष्टेवा तु योजनानि मानं वदन्तीह जिनेश्वराद्रेः // 28 // शत्रुञ्जयश्रीविमलाद्रिसिद्धक्षेत्रेतिनामत्रितयं सदाऽस्य॥ दृष्ट्वा शत्रुअयं तीर्थ स्पृष्टवा रैवतकाचलम् / श्री पुण्डरीकेत्यभिधा चतुर्थी भविना स्थितेस्तेऽथ भविष्यतीहा२१॥ स्नात्वा गजपदे कुण्डे, पुनर्जन्म ना विद्यते // 29 // संसेव्य शत्रुञ्जयशैलमेन -मनेनसः स्युन्नु पापिनोऽपि। अष्टषष्टिषु तीर्थेषु यात्रया यत् फलं भवेत् // भुवोऽनुभावात् किल मृत्तिकापि, प्राप्नोति सर्वोत्तमरत्नभावम् // 22 // श्रीशत्रुअयतीर्थेशदर्शनादपि तत्फलम् // 30 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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