Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 15
________________ [14] 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 हमें सन्तोष है कि दूरदर्शी श्रावक डोशीजी की संयत और सप्रमाण भाषा ने इस निबन्ध को सुन्दर बना दिया है। इस छोटे से निबन्ध के पूर्वार्द्ध में "नाभा-शास्त्रार्थ' पर एक दृष्टि डाल कर बाद में मुखवस्त्रिका का मुँह पर बाँधना अनेक प्रमाणों से सिद्ध किया गया है, और उत्तरार्द्ध में मरुधर केशरी के मुखवस्त्रिका विषयक कुतर्क रूप आक्रमणों का सप्रमाण प्रतिकार किया गया है, जो कि युक्तियों से परिमार्जित, परिमित तथा उचित है, इस प्रयास में डोशीजी का उचित परिश्रम पूर्ण सफल है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। इधर वर्षों से मुखवस्त्रिका के खण्डन मण्डन में कई निबन्ध निकल चुके हैं। संहारकर्ता से संरक्षणकर्ता को अधिक अवधान, उद्योग व परिश्रम करना पड़ता है। तदनुसार खण्डन कर्ता के संमुख सभी मण्डनकर्ता की सावधानी अधिक ही है, किन्तु इस निबन्ध के लेखक की सावधानी सब से बढ़कर अधिक सफलता वाली है। सवृत्ति रक्षा और उसका अधिकाधिक प्रचार मात्र ही इस निबन्ध लेखन का मुख्य और पवित्र उद्देश्य है। सुज्ञ पाठक यदि पठन पाठन और मनन कर सत्य को अपनावेंगे तो लेखक का श्रम सफल होगा और उत्साह बढ़ेगा। इत्यलं विस्तरेण। चैत्र कृष्ण शुक्रवार सम्वत् १९६४ विक्रमी श्रीसंघ का हितेच्छु "मुनि लक्ष्मीन्दु" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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