Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 18
________________ 46 'णमोत्थुणं समणस्स भगवओ वद्धमाणस्स" मुखवस्त्रिका सिद्धि विनय दयामय तेरा ही आधार । मङ्गल दायक सिद्धि विनायक, सब सुख जय जिनराज जगत हितकारी, भव दुःख भंजन हार ॥ १ ॥ सत्य धर्म पर जैनाभासक, करते कूट प्रहार । । के दातार । मिथ्या मान बड़ाई खातिर, तजते शुद्धाचार ॥ २ ॥ सु साधु की निन्दा करके, सेवे मायाचार । भ्रम में डाले भद्रिक जनको, कर मिथ्या प्रचार ॥ ३ ॥ खुले मुँह से वायुकाय का, करते नित्य संहार | नाम धराते जैनी साधु, कर में करपत्ति धार ॥ ४ ॥ मिथ्या मत रत उन जीवों का, हो सन्मार्ग संचार । यही कामना है 'डोशी' की, होवे सफल विचार ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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