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'णमोत्थुणं समणस्स भगवओ वद्धमाणस्स"
मुखवस्त्रिका सिद्धि
विनय
दयामय तेरा ही आधार ।
मङ्गल दायक सिद्धि विनायक, सब सुख
जय जिनराज जगत हितकारी, भव दुःख भंजन हार ॥ १ ॥
सत्य धर्म पर जैनाभासक, करते कूट प्रहार ।
।
के दातार ।
मिथ्या मान बड़ाई खातिर, तजते शुद्धाचार ॥ २ ॥
सु साधु की निन्दा करके, सेवे मायाचार ।
भ्रम में डाले भद्रिक जनको, कर मिथ्या प्रचार ॥ ३ ॥
खुले मुँह से वायुकाय का, करते नित्य संहार |
नाम धराते जैनी साधु, कर में करपत्ति धार ॥ ४ ॥
मिथ्या मत रत उन जीवों का, हो सन्मार्ग संचार ।
यही कामना है 'डोशी' की, होवे सफल विचार ॥ ५ ॥
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