Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 83
________________ ६४ शंका-समाधान ************************************** आने का है। केवल शोभा के लिये ही नहीं। और इस प्रकार भारत रत्न, समाज के चमकते हुए सितारे श्रीमान् शतावधानीजी का कथन सत्य है। लेकिन हमें तो यह अँचता है कि सुन्दरजी की कुतर्क केवल द्वेष बुद्धियुक्त ही है। जिज्ञासा की झलक तो उसमें है ही नहीं। (१६) शंका - वायुकाय के जीव आठ फरसी हैं और भाषा के पुद्गल चौ फरसी हैं। अतएव भाषा के स्वल्प शक्ति वाले पुद्गल द्विगुण शक्ति वाले वायुकाय के जीवों की हिंसा किस प्रकार कर सकते हैं? समाधान - यह भी शंका अनभिज्ञता एवं हठाग्रह को सूचित करती है। ऐसी ही कुतर्क ज्ञानसुन्दरजी ने भी की है। ज्ञानसुन्दरजी यह भूले हुए हैं कि एकेन्द्रिय तेजस्काय के जीव किस प्रकार पंचेन्द्रिय को भस्म कर देते हैं। अब हम ज्ञानसुन्दरजी का योग्य इलाज करने के लिए उन्हें कहते हैं कि आप अन्य कहीं नहीं भटक कर आपही के समाज के आगमोद्धारक, श्री सागरानन्द सूरिजी (जो कि मुखवस्त्रिका के कट्टर विरोधी हैं) के निम्न वाक्य जो प्रतिकार समिति की मासिक पत्रिका 'जैन सत्य प्रकाश वर्ष १ अंक ७ में मुद्रित हो चुके हैं, जरा ध्यान पूर्वक पढ़िये, आपका अज्ञानान्धकार नाश हो जायगाः ‘एम नहिं कहेवू के भाषा वर्गणाना पुद्गलो चउ फरसी होवा थी आठ स्पर्श वाला वाउकाय विगेरे नी विराधना केम करी शके? केम के शब्द वर्गणा ना पुद्गलो जे भाषापणे परिणमे छे ते जेओ के चउस्पर्शी छे, तोपण तेवी रीते परिणमवू नाभी थी उठी ने, कोष्ठमां हणाई ने वर्ण स्थानों मां फरसी ने निकलता पवन द्वारा एज बने छे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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