Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ परिशिष्ट ****** (६) मुखवस्त्रिका गीली होने की शङ्का का निराकरण - "वली घणी वखते कहेवा मां आवेल छे के बांधनार नी मुंहपत्ति भीनी थाय छे तो ते विषे लखवानुं के हाथ मां रखाती होय तेमज मुंहपत्ति ना अभावे ज्ञान नी आशातना तथा जीव विराधना तेओ टाली शकता नहीं होय तेम आपना लखाण परथीज जणाय छे xxx हाथ मां राखनार जो बरोबर उपयोग पूर्वक वरते तो तेणे मुखने अडाडी नेज राखवी जोइए अने तेथी तो तेनी वधारे भीनी थायज, पण जेओनी भीनी न थती होय तेओ मुख थी दूर राखता हो, अने तेथी उपयोग बराबर जलवातो नहींज होय तेम जाणी शकाय छे." - मुंहपत्तिनी चर्चा, ले० विजय हर्षसूरिजी ८४ (मुम्बई समाचार दैनिक ता० १२ - १२ - ३४ पृष्ठ १२) (७) आठ प्रत वाली मुख वस्त्रिका बांधना चाहिये - " तेमज आपना तरफ थी आवश्यक बालावबोध ना पाठना आधारे आठपडी मुंहपत्ति बांधवानुं कहेवा मां आवे छे एटले नहीं बांधवानो पाठ मलवो शक्य नथी, कारण के तमारा अने अमारा शास्त्रो एकज छे, अमें बांधवानुं स्वीकार्य छे, त्यारे तमों बांधवाना पाठा आपो छो अने ते पाठोज तमारे माटेपण बांधवानुं विधान करे छे." ( जैन ता० ६-१-३५ पृष्ठ २०) सूरसागरजी ने जवाब - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104