Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 101
________________ ८२ परिशिष्ट ************************************** भाई रतनलालजी डोशीए मुखवस्त्रिका सिद्धि नामनो निबंध अथ थी इति सुधी स्वमुखे वांची संभलाव्यो लेखकनी शोधक वृत्ति प्रशंसा पात्र छे जेओ मुखवस्त्रिका बांधवानुं स्वीकारता नथी, तेओनां वचनोनुं अवतरण आपी ने मुखवस्त्रिका बांधवानुं सप्रमाण समर्थन कर्यु छे, ए लेखकनी खूबी छे.. आवा ऊगता लेखकने ए दिशामां उत्साह प्रेरक उत्तेजन मले तो ते आथी पण वधारे संगीन साहित्यनी सेवा बजावी शके, एवी संभावना छे जिज्ञासु वर्ग लेखकना प्रयासनी कदर करवा नहिं चूके एवी आशा छे सुज्ञेषु किं बहुना. परिशिष्ट-२ (१) प्राचीन चित्र - '."प्रदर्शन मां व्याख्यान प्रसंग ना चित्रों मां मुँहपत्ती बंधन वाला चित्रों जोवा मां न आव्या होय तेथी करीने समस्त भारतवर्ष ना पिक्चर ग्रन्थों मां तेवा चित्रों नथीज एम मानवु ए मुर्खाइज छे, अनेक स्थानों मां तेवा प्राचीन चित्रों छे, अने समय आव्ये प्रसिद्ध पण थशेज." - श्री विजय हर्षसूरिजी (मुम्बई समाचार दैनिक ता० २७-८-३४ . पृ० ७ मुहपत्तिनी चर्चा शीर्षक से) (२) हाथ में रखने से कार्य सिद्धि नहीं होती - "हाथ मां राखी ने वांचनार नी ते विषे केटली उपयोग शून्यता छे, ते विषेनी भूल कबूल कर्याना दृष्टांतो मोजूद छे, अने श्रोताओ ने पण सुविदित थयेल छे के हाथमा राखीने वांचनारनी उपयोग शून्यता थाय छे." xxx Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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