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परिशिष्ट
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एक मात्र उद्देश्य अहिंसा व्रत को जहाँ तक मानव प्रयास में सम्भव है कड़ी तौर पर एवं पूर्णता से पालन करना ही है।
इन आध्यात्मिक लाभों को छोड़कर, इस कपड़े के टुकड़े से कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ भी हैं। जैसे एक सर्जन जब चीरा फाड़ी का काम करता है उस समय वह अपना मुँह ढ़क लेता है ताकि उसके श्वास से रोगी पर कोई जीव असर नहीं करे तथा रोगी के रोगिष्ठ कीट भी उसके गले में प्रवेश न कर सकें। (भोजन बनाने वाले भी प्रायः इन्हीं कारणों से ऐसा ही किया करते हैं ।) संयोगानुकूल, विभिन्न नामवाली " मुँहपत्ति" उसको बांधने वाले तथा उसके निकटस्थ लोगों की श्वास से लग जाने वाले रोगों से रक्षा करती है।
परन्तु इसका मुख्य अभिप्राय आध्यात्मिक ही है और जो स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ हैं, वे केवल आकस्मिक हैं।
(अभिप्राय) (3)
श्री रत्नविजयजी गणि 'मुँहपत्ति चर्चासार' पृष्ठ ७६ में अन्तिम प्रार्थना करते हुए लिखते हैं कि -
" आ प्रकारे मुहपत्ति बंधन ने लगता प्रसंगों विषेना पूर्वाचार्यों कृत जुदा जुदा प्राचीन शास्त्र ग्रन्थोना पाठोनो मली आवेलो संग्रह पूर्ण थाय छे, तेथी मुहपत्ति बंधन ए जैन शास्त्र विहित प्रवृत्ति छे, निर्विवाद सिद्ध थाय छे, ते स्वलिंग छे, ते बांधवामां न आवे तो प्रायश्चित्त आवे छे.
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पुनः पृष्ठ ६१ की अन्तिम पंक्ति में लिखते हैं कि -
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