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मुखवस्त्रिका सिद्धि
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(३) खुले मुँह बोला हुवा वचन पापकारी है -
“आगल चालता तेओ लखे छे के श्री भगवतीजी ना वाक्य थी बोलतां मुख ढांकतुं एटलुंज नक्की छे, जो तेथी सावध वचन पणुं टालवा बांधवानी होय तो बधी वखत बोलतां बांधवी पड़शे" आना प्रत्युत्तर मा जणाववानुं के "श्री भगवती सूत्र, श्री महानिशीथ सूत्र आदि ना शास्त्र प्रमाण जोइए तो बेशक उघाड़े मोंढे उच्चारायेलं वचन सावद्य वचन-पापवालुं वचन छे." xxx
“मुखने अडाडीनेज राखी शकाय, अने वास्तविक यतना जलवाय परंतु मुखथी दूर राखवा थी पूर्ण यतना जलवातीज नथी." xxx (४) मुखवस्त्रिका मुँह पर अवश्य बांधना चाहिये -
_. “जे मउन रहेनार पण बांधे छे तो बोलनारे तो खास करीने मुँहपत्ति बांधवीज जोइए, मउन रहेनार श्रावक ने तो ज्ञानाशातना नुं कारण नथी, मुखमां कांई पड़वानुं संभव नथीं तेम छतां पण जो मुख-कोश बांधे छे तो मुनिओ ने तो वांचन ने अंगे ज्ञान नी आशातना टालवी होय छे, तथा वायुकायादिक जीवोनी रक्षा करवानी होय छे, ते कारण माटे श्रावक थी पण साधुनी जवाबदारी विशेष वधे छे." । (५) वर्णनात्मक उल्लेख की शङ्का का समाधान -
“वली घणां शास्त्रमा केटलेक स्थाने दांतनी कांति नुं वर्णन आवे छे तेपर थी मुंहपत्ति नहीं बांधता होय तेम कहे छे, परंतु ते वर्णन तो केवल वस्तु स्वरूप नी दृष्टिए कराएल छे अने तेथी मुंहपत्ति बांधवाना अभाव ने सिद्ध करनार नथी, केम के तेम करवा जतां तेओ उघाड़े मुखे बोलता हता तेम सिद्ध थइ जशे."
. - नं० २ से ५ तक ले विजय हर्षसूरिजी मुहपत्तिनी चर्चा ('मुम्बई समाचार' दैनिक ता० ५-१२-३४ पृष्ठ ६) तथा
('जैन भावनगर' ता० १६-१२-३४ पृष्ठ ११५१) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org