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मुखवस्त्रिका सिद्धि
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ing under circumstances, safeguards the user and those surrounding him from possible infection carried by the breath.
But the iessential significance is spiritual and whatever the hygienic value is only incidental.
Daulat Singh Kothari M. Sc. PH. D. (Cantal) Head of the physics Dept., University, DELHI. (उपरोक्त अंग्रेजी अभिप्राय का हिन्दी अनुवाद)
जैन स्थानकवासी साधु अपनी तपस्या और अहिंसा व्रत को मन, वचन और कर्म से कड़ी तौर पर पालन करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
उनके जीवन का एक मात्र दृढ़ उद्योग इस व्रत को उसके विभिन्न रूपों में पालन करना है। यहाँ तक कि उनका वेष भी जो कुछ विचित्र सा प्रतीत हो सकता है उनके उद्देश्य को पूरा करने में सहायता प्रदान करने वाला बन गया है। "मुँहपत्ति' अर्थात् कपड़े को छोटा टुकड़ा, जिसको वे भोजन अथवा ऐसा ही कोई कार्य करने के अतिरिक्त, हर समय मुँह पर बाँधे रखते हैं, उनके वेष की सबसे अधिक विचित्रता है। उनके लिए इसका नैतिक सुख यह है कि यह हर वक्त उनको स्मरण कराती रहती है कि उसके नीचे से, मुँह से जो शब्द निकलें वे शुद्ध, सत्य और निष्कपट हों।
इस नैतिक अभिप्राय के अतिरिक्त यह "मुँहपत्ति' वायु में उड़ने वाले सूक्ष्मदर्शी जीवों को उस हानि से बचाती है कि जो यदि "मुँहपत्ति" नहीं होती तो श्वास के झोंके और उसकी उष्णता से हो जाती। ऐसा करना अहिंसा के अभ्यास को विचार तरङ्गों में उड़ा लेंना प्रतीत हो सकता है परन्तु स्मरण रहे कि साधु के जीवन का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org