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उपसंहार
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समय मुखवस्त्रिका मुँह पर ही बाँधी जाती थी, यद्यपि सोमिल जैन धर्म छोड़ चुका था और इसी से उसने जैन मान्यता के विरुद्ध वस्त्र की जगह काष्ट को मुँह पर बांधा, पर बाँधना तो सिद्ध है ही । यदि उस समय बाँधने की पद्धति नहीं होती तो वह क्यों बाँधता ?
आचारांगादि आगमों में जहाँ जहाँ मुखवस्त्रिका शब्द आया है, वहाँ वहाँ मुँह पर बाँधने का वस्त्र विशेष ही अर्थ होता है, जिसे हम प्रथम सिद्ध कर आये हैं। फिर अब शंका की बात ही नहीं रह सकती ।
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(२३)
उपसंहार
पूर्वोक्त प्रकरणों में मुखवस्त्रिका के उद्देश्य तथा बाँधने और नहीं बाँधने से होने वाले हानि लाभ स्पष्ट बता दिये गये हैं, जिनका संक्षिप्त सार इस प्रकार है -
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(१) मुखवस्त्रिका वायुकायादि जीवों के रक्षार्थ एवं जैन सांधुओं की पहिचान के लिए ही मुँह पर धारण की जाती है ।
(२) मुँह की वायु से बाहर के वायुकायिक जीवों की हिंसा होती है।
(३) मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधने से ही दोनों उद्देश्य बराबर सध सकते हैं। नहीं बाँधने से जैन लिंग और जीव रक्षा का पूर्ण पालन नहीं हो सकता ।
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