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मुखवस्त्रिका सिद्धि
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पूर्वना श्रीगणधर महाराजादिक सुविहित, पूर्वधर महापुरुषो तरफ थी परंपरा मां मलेल वारसो छे, तेमज श्री बूटेरायजी महाराज ना पहेला । बधाना पूर्वजो बांधता हता ए निःसंशय बिना छ।
श्री बूटेरायजी महाराज ना परिवार मां पण श्री नीतिविजयजी महाराजे बांधेल छे, बहुश्रुत पंन्यास श्री गंभीरविजयजी महाराजे पण अमदाबाद मां लुहार नी पोलना उपाश्रये व्याख्यान समये बांधेल हती, एटलुंज नहीं पण ए प्रथा सत्य अने वास्तविक छे तेम तेओ श्रीए लखेल पण छे, बहुश्रूत सुरीश्वरोए पण परंपरा थी बांधवानु स्वीकार्यु छे, तेमना हस्ताक्षरों.पण जनता नी जाणमाटे प्रसिद्ध थयेला छे, प्रसिद्ध सुरीश्वरोए पण कहेलुं के गुरु महाराज न होता बांधता एटले अमे नथी बांधता पण बांधवाना रिवाज ने खोटो नथी गणता, कर्मनुं सारूं ज्ञान धरावनार प्रसिद्ध उपाध्यायजी पण अमारा साधुनी साथे बातचीत दरम्यान कहेल छे के मुँहपत्ति बाँधवा विषेना पाठो तमारा करतां पण अमारा वांचवा मां बधारे आवेल छे।
प्रसिद्ध पंन्यासजी ए पण अमारा एक साधु साथे बातचीत दरम्यान कहेल छे के मुँहपत्ति बांधवानुं खंडन करनार विराधक छे।"
- ले० विजय हर्षसूरिजी (मुंबई समाचार दैनिक ता० ५-१२-३४ पृ० ६, मुँहपत्ती नी चर्चा लेखांक २ से)
उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट हो गया कि मूर्तिपूजक समाज के सभी साधु व्याख्यानादि प्रसंग पर मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधते थे, किन्तु जब से बूटेरायजी इनकी समाज में गये तब से मुखवस्त्रिका का मुँह से सर्वथा असहयोग हुआ और असहयोगी हुए बूटेरायजी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . www.jainelibrary.org