Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 75
________________ ५६ शंका-समाधान ************************************** (१५) शंका - मुँह पर बाँधने के कारण मुखवस्त्रिका थूक से गीली हो जाती है, जिससे उसमें सम्मूर्छिम जीव उत्पन्न हो जाते हैं और उनकी हिंसा भी होती है। ऐसी हालत में यह क्रिया किस प्रकार उचित कही जा सकती है? समाधान - मुँहपत्ति में थूक से सम्मूर्छिम जीवों की उत्पत्ति बताना भी शास्त्र ज्ञान की अपूर्णता सिद्ध करता है। सूत्रों में कहीं भी थूक से सम्मूर्छिम जीवों की उत्पत्ति होना नहीं कहा है। देखिये - पन्नवणा सूत्र में सम्मूर्छिम जीवों की उत्पत्ति के चौदह स्थान बताये हैं, जैसे - उच्चारेसु वा १, पासवणेसु वा २, खेलेसु वा ३, संघाणेसु वा ४, वंतेसु वा ५, पित्तेसु वा ६, पूइएसु वा ७, सोणिएसु वा ८, सुक्केसु वा ६, सुक्कपोग्गल परिसाडिएसु वा १०, विगय जीवकलेवरेसु वा ११, इत्थीपुरिस संजोएसु वा १२, नगर निद्धमणेसु वा १३ और सव्वेसुचेव असुइ ठाणेसु वा १४। अर्थ - (१) विष्ठा में, (२) पेशाब में, (३) खेकार (बलगम) में, (४) नाक के श्लेष्म (मल) में, (५) वमन में, (६) पित्त में, (७) पीप में, (८) रक्त में, (6) वीर्य में, (१०) वीर्य के सूखे हुए पुद्गलों के गीले होने पर, (११) शव में, (१२) मैथुन में, (१३) शहर की मोरी में और (१४) सब अशुचि के स्थान में। इन चौदह स्थानों में यूँक से जीवोत्पत्ति होने का तो कोई स्थान ही नहीं है। फिर यह नूतन सिद्धान्त हाथ में वस्त्र रखने वालों ने न जाने किस शास्त्र में से घड़ निकाला है? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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