Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि "नहीं बाँधनार ने केटलूँ नुकसान थाय छे तेनो ताजो बनेलो दाखलो जनतानी आगल मूकुछं, अमदाबाद शहरमां अमुक उपाश्रय मां स्थीरता करता अमुक आचार्य महाराज व्याख्यान नी पीठ पर बेसी व्याख्यान खूब जोरदार करी रह्या हता, जुस्सा मां, चालता व्याख्यान मां- 'मक्षीका मुखमा प्रवेश कर्यो' प्रवेश करतां व्याख्यान नो ध्वनि अटके छे, अने वमन नो ध्वनि झलके छे. भाइओ! विचार करजो, वीतरागना वचनामृत नुं पान करता श्रोताओ शुं सांभले छे ? वमन के ? आ प्रताप कोनो ? व्याख्यान मां मुंहपत्ति नहीं बांधनाराओनो! बांधनाराओ ना मुखमा मक्षिका प्रवेश करी शके के ? एवा अनेक कारणे शास्त्रकार महाराजे मुंहपत्ति बांधी व्याख्यानादिक करवा भलामण करेल छे." *** ५६ *** पर इस विषय में और भी सत्य घटनाएँ दी जा सकती है, पाठक स्वयं अनुभवशील होंगे, अत: निबन्ध का कलेवर व्यर्थ बढ़ाकर उपरोक्त घटना ही पर दो शब्द लिख कर विषय पूर्ण करता हूँ । हाथ में रहने वाली जिस मुखवस्त्रिका से ऐसे अनर्थ हों, व मक्खी जैसे प्राणी की भी जो रक्षा नहीं कर सकती, वह वायुकाय जैसी सूक्ष्म काय जीवों की रक्षा किस प्रकार कर सकती है ? फिर प्रसंग भी कैसा ? व्याख्यान का ! जहाँ सैकड़ों मनुष्यों की मौजूदगी होगी, वहाँ भी ये लोग इस प्रकार उपयोग का आदर्श सिद्ध करते हैं, तब बाद में या अकेले में अथवा विरल जनों में तो कहना ही क्या? उस समय इस कर - वस्त्र का क्या उपयोग होता होगा? और कितनी अयतना होती होगी? यह तो ज्ञानी जाने । इससे साफ जाहिर होता है कि जो उपयोग का व्यर्थ बहाना कर मुखवस्त्रिका नहीं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104